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अपनी आत्मकथा में इस आस्था को प्रस्तुति दी कि हिंदू धर्म में जो सूक्ष्म और गूढ़ विचार है, आत्मा का निरीक्षण है, दया है वह दूसरे धर्मों में नहीं है। दक्षिण अफ्रीका प्रवास के प्रथम वर्ष में गांधी के हिन्दू धर्म आस्था की कसौटी हुई। क्वेकर (ईसाइयों का एक संप्रदाय) लोगों ने गांधी को ईसाई बनाने की कोशिश की, लेकिन धर्म परिवर्तन के मामले में उन्होंने बिलकुल स्पष्ट कह दिया-अंतर से आवाज उठे बिना हिंदू धर्म का परित्याग एवं ईसाई-धर्म को अंगीकार मैं नहीं कर सकता। उन्होंने हिंदू धर्म के साथ-साथ दूसरे सभी धर्मों का अध्ययन-मनन किया और अंत में इस निर्णय तक पहंचे कि 'धर्म सभी अच्छे हैं: लेकिन साथ ही अपर्ण भी है. क्योंकि उनकी व्याख्या या तो ठीक से नहीं की गई या वेमन से की गई और अक्सर गलत भी की गई।' स्वयं को कट्र हिंदू मानते हुए भी गांधी ने इस धर्म में व्याप्त जाति-व्यवस्था, छुआछूत को मानव जाति का अभिशाप बतलाया। स्पष्ट कहा-भगवान् ने इन्सान को किसी ऊँच नीच व्यवस्था के साथ पैदा नहीं किया है।
__ गांधी की अहिंसा का अर्थ है तमाम जीवों के लिए पूरा प्रेम। अतः अहिंसा की दृष्टि से भी छुआछूत-अस्पृश्यता का कोई औचित्य नहीं रह जाता। 'अछूतपन हिन्दू धर्म का अंग नहीं है, वह हिन्दू धर्म में पैठी हुई एक सड़न है, वहम है, पाप है; और उसे मिटाना हर एक हिंदू का धर्म है, उसका परम कर्तव्य है।" उनकी दृष्टि में अस्पृश्यता के सर्प को मारे बिना हम कुछ नहीं कर सकते। अस्पृश्यता वह विष है, जो हिंदू-समाज के मर्म को खोखला कर रहा है। स्वराज्य की प्राप्ति में भी अछूतों की मुक्ति को अनिवार्य बतलाया। उनका स्पष्ट कथन था, यदि 'भारत की आबादी के पांचवें हिस्से को स्थायी गुलामी की हालत में रखते हुये स्वराज्य मिल भी मिल गया, तो स्वराज्य एक शब्द मात्र होगा।' ये शब्द गांधी के भीतर अस्पृश्यता निवारण की तड़फ को जाहिर करते हैं। मानवीय संवेदनशीलता के आधार पर उन्होंने इस प्रथा का विरोध किया, क्योंकि इस अमानवीय तत्त्व के कारण हिन्दू समाज की अपार हानि हुई है।
134 / अँधेरे में उजाला