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अहिंसा का प्रयोजन
अहिंसा की सही समझ पैदा हो यह समय का तकाजा है । अहिंसा का प्रयोजन क्या है ? इसे समाहित करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा कि दूसरे को न मारना, किसी को कष्ट न देना - यह अहिंसा का एक क्षेत्र है, पूर्ण नहीं अधूरी समझ है । अहिंसा का मुख्य उद्देश्य है - अपनी आत्मा का पतन न हो। कोई किसी को मारता है । व्यवहार की भाषा में कहा जाता है कि उसने उसको मार दिया। पर आध्यात्म की भाषा में जो मारने वाला है वह स्वयं मर गया। स्वयं मरे बिना कोई किसी को नहीं मार सकता। सताने वाला स्वयं संतप्त होता है । हम अहिंसा की चर्चा दूसरों के लिए नहीं, अपने आप के लिए करें। किसी भी हिंसा प्रसंग में हिंसा करने वाले का अहित ज्यादा होता है 1 आत्मा, कर्म व पुनर्जन्म को सामने रखकर कोई भी निर्णय करें । इन्हें भूलने से भ्रांति पैदा होती है। व्यक्ति सही निर्णय नहीं ले सकता ।
प्रतिक्रियात्मक जीवन अहिंसा को मान्य नहीं है। स्वतंत्रता के लिए व स्वस्थता के लिए जरूरी है अपने आचार व व्यवहार का सम्यक् परीक्षण करें। अहिंसा हमारा स्वभाव है। अहिंसा की दिशा में प्रस्थान के लिए हम अपने मन, वाणी व शरीर को संयत करें । अहिंसा से पहले संयम की बात करें । 207 मंतव्य के आशय स्वरूप आत्मोत्थान एवं संयम चेतना का विकास मुख्यतया अहिंसा की साधना का प्रयोजन है ।
अहिंसा तेजस्वी कैसे बनें?
अहिंसा शक्ति का स्रोत है। पर, इसे पहचानने की दृष्टि पैदा हो तभी उससे लाभ उठाया जा सकता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने बताया- 'अहिंसा की ताकत हिंसा से अधिक है । अहिंसा को कहीं बाहर ढूंढने नहीं जाना है । वह हमारे अंदर ही है। बस हमें उसे पहचानना है ।' जिसने भी इसकी शक्ति को पहचाना उसने अपनी अर्हता को ऊँचाईयाँ प्रदान की है। महात्मा गांधी का नाम इस दृष्टि से अग्रणी है। उन्होंने अहिंसा की शक्ति के बदौलत भारत को आजादी का वरदान नसीब करवाया । अहिंसा की शक्ति तेजस्वी कैसे बनें ? इस और ध्यान केन्द्रित करते हुए महाप्रज्ञ ने बताया - तह में जाकर देखें तो ज्ञात होगा कि हिंसा और अहिंसा का असंतुलन अन्तर्राष्ट्रीय जगत् पैदा कर रहा है। हिंसा की संहारक शक्ति बहुत बढ़ गई है। अहिंसा के छोटे-छोटे प्रयत्न उसे कम कर सकें यह संभव नहीं है। इस विषय में पुनर्विचार की आवश्यकता है। उसका कार्यक्रम आधुनिक समस्याओं के संदर्भ में आयोजित हो । शस्त्रीकरण जैसी भयंकर समस्या के प्रति विश्व चेतना को जागृत करना, आर्थिक व्यवस्था की विषमता से होने वाली हिंसा के प्रति जनता का ध्यान आकर्षित करना, मानसिक तनाव और अपराध मनोवृत्ति के मूल में पनपने वाली हिंसा का अनुसंधान करना और उनकी रोकथाम के लिए उपाय सुझाना आदि अहिंसा को तेजस्वी बनाने के उपाय हैं। अहिंसा के लिए संवेदनशीलता का विकास जरूरी है, पर आज केवल उसी के आधार पर अहिंसा को व्यापक और शक्तिशाली नहीं बनाया जा सकता है। विकास की पृष्ठभूमि में आने वाले विघ्नों को समझकर ही अहिंसा का नया आयाम उद्घाटित किया जा सकता है। 208 यह अहिंसा के क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिए सात्विक संबल है ।
अपने व्यापक अनुभव को वांटते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने यह भी बताया कि जब तक मानवी
98 / अँधेरे में उजाला