________________
मस्तिष्क का परिष्कार नहीं किया जाता, दृष्टिकोण परिवर्तन का अभ्यास नहीं किया जाता, जीवन शैली का परिवर्तन नहीं किया जाता, और जीवन की प्राथमिक आवश्यकता रोटी की पूर्ति नहीं की जा सकती तब तक अहिंसा तेजस्वी बनें अथवा अहिंसा का प्रवाह निरंतर चलता रहे, यह कम संभव लगता है। यह मंतव्य अहिंसा की तेजस्विता के बाबत एक स्पष्ट दृष्टि प्रदान करता है। जिसका अनुशीलन कर अहिंसा की शक्ति का वांछित विकास किया जा सकता है। अहिंसा का विकास कैसे हो अहिंसा एक सर्वोच्च मूल्य है। इसका विकास व्यक्ति, समाज, राष्ट्र और विश्व की समृद्धि का मूल है। इसके विकास की भूमिका कितनी महत्त्वपूर्ण है। पर, जन साधारण इससे बेखबर है। इस तथ्य को प्रस्तुति देते हुए आचार्य महाप्रज्ञ ने कहा-किस प्रकार अहिंसा का विकास किया जाये? अहिंसा के विषय पर चर्चा करने वाले भी इस बात को नहीं जानते कि अहिंसा की प्रकृति क्या है? अहिंसा कैसे काम करती है ? जब तक अहिंसा के क्षेत्र में काम करने की शैली से परिचित नहीं होंगे, अहिंसा का विकास कैसे कर पाएंगे? अहिंसा कब और कैसे काम करती है? प्रश्न कर्ताओं का अनुभव भी इस बात के लिए गवाह देता है कि इस विषय पर जितना शोध होना चाहिए, उसका अंशमात्र भी नहीं हो रहा है? अहिंसा का सबसे ज्यादा विकास भारतवर्ष में हुआ था। गुप्तयुग हिन्दुस्तान का स्वर्णयुग रहा है।
ऊपरी तौर से अहिंसा को देखने वालों का यह स्वर था कि अहिंसा ने देश को परतंत्र बनाया। इस बात का खंडन करते हुए महाप्रज्ञ ने कहा-'भारत देश हिंसा से पराधीन बना है। आपसी ईर्ष्या, घृणा और फूट ने देश की आत्मा को छिन्न-भिन्न कर दिया। उस स्थिति में वह बाहरी आक्रमणों से परास्त हो गया।' फिर से राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने अहिंसा का अपराजेय शस्त्र जन साधारण के दिलों-दिमाग में थमाया। उसके सकारात्मक परिणाम निकले। तथ्यतः जहां अहिंसा पुष्ट होगी वहां परस्परता का भाव प्रबल होगा। वैसी स्थिति में देश की जनता में राष्ट्रीयता और बन्धुत्व का विकास होगा फिर किसी राष्ट्र की ताकत नहीं कि उस देश को परतंत्र बना सकें। अपेक्षा इस बात की है कि अहिंसा का सम्यक् विकास हो। नये संदर्भ में यह चिंतन होना चाहिए कि अहिंसा को कैसे सफल बनाया जाए?
अहिंसा विकास के लिए सामुदायिक चेतना का विकास जरूरी है। बिना इसके हिंसा संबंधी समस्या बढ़ती है। एतद् आशय की अभिव्यक्ति आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में देखी जा सकती है। अहिंसा के विकास हेतु व्यक्तिगत स्वामित्व का सीमाकरण करें। जब तक परिग्रह की समस्या का समाधान नहीं होगा। आर्थिक नीति की सफलता नहीं होगी, गरीबी, बेरोजगारी एवं हिंसा को नहीं मिटाया जा सकता।
अहिंसा की दिशा में विकास करने हेतु संग्रह एवं उपयोग का संयम करें। व्यसनपरक चेतना का विकास न हो। नए दृष्टिकोण का निर्माण करें। आज धार्मिक आदमी दान, पुण्य तो करता है, * किन्तु लोभ के कारण व्यापार में मिलावट, झूठा तोल-माप, धोखाधड़ी करके अनैतिक आचरण को
बढ़ावा दे रहा है। अनैतिकता हिंसा है। इस कथन का स्पष्ट निदर्शन लोभवृत्ति के परिष्कार का है। जब तक ऐसा नहीं हो पाता अहिंसा का विकास प्रश्नायित बना रहेगा।
संघर्ष क्यों होता है? इसे सामयिक प्रस्तुति देते हुए महाप्रज्ञ ने कहा-जाति, वर्ग, समाज एवं
आचार्य महाप्रज्ञ का अहिंसा में योगदान / 99