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अहिंसा यात्रा के पथिकों को अनुशास्ता ने सहिष्णुता और प्रवर संयम का संकल्प करवाया। सड़क के मार्ग ने सहिष्णुता की परीक्षा कर ही ली। महाप्रज्ञ के ये बोल इसके साक्षीभूत है। 'बाड़मेर से गुढ़ामालाणी तक वे एक ऊबड़-खाबड़ मार्ग को पार कर आए हैं लेकिन मार्ग इतना कष्टकारी नहीं होता जितना कष्टकारी आदमी का ऊबड़-खाबड़ दिमाग। आदमी के ऊबड़-खाबड़ दिमाग ने जातिवाद के बखेड़ खड़े किये हैं।' प्रेरक संबोध पाकर यात्रियों का उत्साह शतगुणित हो उठा, पथ की व्यथा को भूल गये।
मार्गवर्ती सैंकड़ों गाँवों के लोग आचार्य महाप्रज्ञ में साक्षात् भगवत् शक्ति का दर्शन पाकर धन्यता का अनुभव करते। अपनी दुविधा, व्यथा अथवा समस्या को सरल भाव से निवेदित करते। प्रसंग 21 जून, 2002 का है-आचार्य महाप्रज्ञ आजोल पधारे। मार्ग में कल्याणपुरा और आनंदपुरा गांव से होकर यात्रा आगे बढ़ी। ज्ञात होते ही गाँव के लोग झुंड के झुंड हाथ में चावल और रोली लेकर खडे हो गए। ज्योंहि यात्रा नायक महाप्रज्ञ पधारे. उन्होंने चावल चरणों में बिखेर दिए। उन्हें समझाया गया। उन ग्रामीण लोगों ने कहा-'गुरूजी आशीर्वाद दें-वर्षा नहीं हो रही है। बिना वर्षा के फसल कैसे उग पाएगी?' गुरूदेव ने फरमाया-'अहिंसा में आस्था रखो। नैतिक मूल्यों में विश्वास रखो। सब कठिनाइयाँ दूर हो जाएगी। यही आशीर्वाद हैं।23 ऐसे अनेक प्रसंगों से यह प्रकट होता है कि गुजरात की धरती में अध्यात्म के संस्कार, संतो के प्रति आस्था, आदर का भाव आज भी जीवित
अहिंसा यात्रा के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए अनुशास्ता ने बतलाया-'किसी को मत मारो' इतनी सामान्य-सी बात कहने के लिए अहिंसा यात्रा का आयोजन नहीं हुआ है। अहिंसा यात्रा का उद्देश्य है-हिंसा के मूल कारण क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, भय आदि को दूर करना। मनुष्य के मन से ही ये सभी निकल जाएं, आत्म निरीक्षण के द्वारा भाव विशुद्धि हो इस दृष्टि से अहिंसा का प्रशिक्षण देना यह अहिंसा यात्रा का लक्ष्य है। हमारी अहिंसा यात्रा का उद्देश्य यही है कि हिंसा की चेतना का रूपांतरण हो जाए। इससे तनाव भी कम होगा। तनाव की स्थिति में सही निर्णय नहीं किया जा सकता।' अस्सी वर्ष की उम्र के पार आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा सोद्देश्य संपादित अहिंसा यात्रा के आशातीत परिणाम निकले।
आंकडे बोलते हैं-अहिंसा यात्रा में 80 लाख लोगों ने सहभागिता दर्ज की एवं अहिंसा को प्रतिष्ठित करने में एकजटता का परिचय दिया। अहिंसा यात्रा ने लगभग बीस हजार किलोमीटर की दूरी नापी। यह यात्रा चूंकि पद-यात्रा थी अतः इसमें बड़े शहर तो कम आए, छोटे-छोटे गाँव अधिक आए। यात्रा नायक आचार्य महाप्रज्ञ ने जब इन गाँवों में जाकर लाखों लोगों के दुर्व्यसन छुड़वाए तो लगा कि महात्मा गांधी भारत में दुवारा प्रकट हो गए हैं।24 अहिंसा यात्रा का यह जादुई प्रभाव था।
अहिंसक समाज निर्माण का एक सक्रिय प्रयोग बनी अहिंसा यात्रा। जिसकी सफलता का राज था-यात्रा नायक द्वारा आत्मीय संबोध पूर्वक जन-जन की संकल्प चेतना का जागरण । आचार्य महाप्रज्ञ ने व्यापक तौर पर आह्वान किया, अहिंसा यात्रा में प्रत्येक व्यक्ति संकल्प करें
. आज मैं पूरा दिन अहिंसा का जीवन जीऊँगा। • लड़ाई संघर्ष नहीं करूंगा। . कटु शब्द का प्रयोग नहीं करूँगा एवं वैर विरोध नहीं करूंगा।
106 / अँधेरे में उजाला