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किसी के प्रति दुर्भावना रखना, यह मानसिक हिंसा है। मानसिक हिंसा आज बहुत बढ़ रही है। कायिक हिंसा तो प्रत्यक्ष दिखाई दे रही है, किंतु मानसिक हिंसा इतनी ज्यादा है कि उसकी लपट ही कायिक हिंसा के रूप में देखी जा रही है। आज जो प्रत्यक्ष हिंसा देखने में आ रही है, वह मानसिक हिंसा का ही परिणाम है, उसी का रिजल्ट है। किसी की प्रगति, किसी का विकास, किसी की समृद्धि देखकर मन में जलन पैदा होती है। जो व्यक्ति के भीतर विषैले रसायन का निर्माण कर उसे बीमार बनाते हैं। यह मानसिक हिंसा प्रमख रूप से दःख की नियामिका है।
वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में उन्होंने बताया कि आज वाचिक हिंसा की प्रबलता बढ़ रही है। दूसरों को सुख से जीने देना चाहते हैं तो वाचिक हिंसा का परिहार करना सबके लिए आवश्यक है। 95 कट शब्दों का प्रयोग. व्यंग्यात्मक भाषा. गाली-गलौज ये वाचिक हिंसा के रूप हैं। वाचिक हिंसा मानवीय संबंधों में जहर घोलती है।
सामयिक प्रस्तुति देते हुए महाप्रज्ञ ने बताया हिंसा आज तीन रूपों में उभर रही है। एक आतंकवादी हिंसा, दूसरी साम्प्रदायिक हिंसा तथा तीसरी जातीय हिंसा। आज आंतकवादी हिंसा प्रबल है। जाहिर है यह वर्तमान व्यापी हिंसा किसी न किसी रूप से हर एक को प्रभावित कर रही है। हिंसा के कारण हिंसा की समस्या वैश्विक है। इसे समाहित करने की भावभूमि पर उसके व्यापक कारणों का अन्वेषण महत्त्वपूर्ण है। हिंसा के कारणों की लम्बी श्रृंखला है। कुछ अहंभूत का विमर्श अभिष्ट है। हिंसा बढ़ रही है, यह हमारे सामने है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार इसके तीन प्रमुख कारण हैं
1. हिंसा की रणनीति है। 2. हिंसा का नेटवर्क है। 3. हिंसा के प्रशिक्षण की व्यवस्था है।196
सारे प्रयत्न हिंसा को बढ़ावा देने वाले हो रहे है। हिंसा के लिए शस्त्रों का निर्माण, हिंसा का प्रशिक्षण। जब जापान में अणुशस्त्रों का प्रयोग हुआ तो सारा संसार हिंसा के महाप्रलय से भयभीत
और आतंकित हो गया। यह घटना अहिंसा की और ध्यान केन्द्रीकरण का प्रमुख कारण बनीं। प्रश्न है क्या अहिंसा विकास की पृष्ठभूमि में यथार्थ का अन्वेषण हुआ या नहीं?197 इस मन्थन के संदर्भ में आचार्य महाप्रज्ञ का सबसे बड़ा योगदान है हिंसा के कारणों की खोज। अहिंसा विकास पर तब तक प्रश्न चिह्न लगा रहेगा जब तक इसके कारणों की विद्यमानता रहेगी। उनका मानना था कि अहिंसा तो परोक्ष रूप से सामने आती है। 'मेरा टारगेट तो हिंसा है। मैं हिंसा की समाप्ति के लिए काम कर रहा हूँ।'
बहुत से ऐसे लोग हैं जो वैसे तो चींटी को मारने से भी डरते हैं, किन्तु अर्थ का इतना दुरूपयोग करते हैं कि जाने-अनजाने हजारों आदमियों को हिंसा की प्रेरणा देते हैं। इसलिए हिंसा के कारणों पर समग्रता से विचार बहुत जरूरी है। महाप्रज्ञ ने हिंसा के कारणों की व्यापक मीमांसा की।
समय-समय पर उदीप्त होने वाली हिंसा को तात्विक रूप से समझने और उसे प्रस्तुति देने में महाप्रज्ञ का मौलिक योगदान है। उनके अभिमत में हमारे मस्तिष्क में दो प्रणालियाँ हैं। उसमें एक है-औदयिक प्रणाली। जब-जब मोह का उदय होता है, हिंसा उभर आती है। यह हिंसा का अपने आप में वैज्ञानिक विश्लेषण है।
94 / अंधेरे में उजाला