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बगैर कोई द्वेष भाव रखे खुशी से मरने के लिए तैयार हो जायेंगे। मैंने हजारों की उपस्थिति में बारबार जोर देकर कहा है कि बहुत संभव है कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा तकलीफें झेलनी पड़े। यहां तक कि गोलियों का शिकार होना पड़े। नमक सत्याग्रह के दिनों में क्या हजारों पुरुषों और स्त्रियों ने किसी भी सेना के सैनिकों के ही समान बहादुरी के साथ तरह-तरह की मुसीबतें नहीं झेली थीं? हिन्दुस्तान में जो सैनिक योग्यता अहिंसात्मक लड़ाई में लोग दिखा चुके हैं उससे भिन्न प्रकार की योग्यता किसी भी आक्रमणकारी से लड़ने के खिलाफ आवश्यक नहीं है-सिर्फ उसका प्रयोग एक वृहत्तर पैमाने पर करना होगा।188 उनका यह अटल विश्वास था कि हिन्दुस्तान शुद्ध अहिंसा की नीति को अपनाये, उसे नुकसान पहुँच ही नहीं सकता। हिंसा के सहारे स्थायी समाधान निकल ही नहीं सकता।
उन्होंने यह घोषणा कि-मेरा विश्वास है कि कैबिनेट मिशन ने जिस स्टेट पेपर का एलान किया है, उसके बनाने वाले यह चाहते हैं कि हिन्दुस्तान की हुकूमत की बागडोर शान्ति से हिन्दुस्तान के नुमाइन्दों के हाथ सौंप दी जाय। लेकिन अगर हमें ब्रिटिश संगीनों और मशीनगनों के इस्तेमाल की जरूरत महसूस होती है, तो अंग्रेज यहां से जाने वाले नहीं। और अगर वे चले भी गये, तो उनकी
ह कोई दसरी विदेशी हकमत ले लेगी।189 अतः अहिंसा ही एक मात्र परतंत्रता की बेडिया तोडने का निरापद मार्ग है। उनका दृढ विश्वास था यदि हम अहिंसा द्वारा ब्रिटिश शासन से निबट सकें तो केवल हिटलर-शाही क्या स्वेच्छाधारी शासन मात्र का संसार से अंत कर सकेंगें। अपनी आस्था को बनाये रखा कि 'तलवार से ली हुई चीज उसी तरह चली भी जाती है। क्षणभर के लिए भी गांधी का यह विश्वास धूमिल न हुआ और उन्होंने भारत की आजादी अहिंसा के बल पर हासिल कर दुनिया के समक्ष एक मिसाल पेश की। जनतंत्र और अहिंसा जनतंत्र और अहिंसा में अन्योन्याश्रय संबंध है। जनतंत्र के बिना न तो अहिंसा पनप सकती और न अहिंसा के बिना जनतंत्र की स्थापना हो सकती है। जनतंत्र की अपेक्षा है विचार स्वातंत्र्य । अहिंसा की अपेक्षा है सभी प्रकार के शोषण और दबाव से मुक्ति। इस दृष्टि से अहिंसा और जनतंत्र दोनों एक दूसरे के पर्याय हो जाते हैं। गांधी ने इस तथ्य का गहराई से अनुभव किया-हिंसा के द्वारा न तो स्वराज्य की स्थापना की जा सकती है और न सच्चे प्रजातंत्र की, क्योंकि हिंसा के द्वारा विरोधियों का दमन होता है या उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है जो व्यक्ति की स्वतंत्रता का अपमान है। यदि व्यक्ति की स्वतंत्रता प्रजातंत्र का सार है तो इसकी सुरक्षा और पूर्ण विकास अहिंसा में ही संभव है।190
संघर्ष, युद्ध और खून खराबे से प्राप्त होने वाले प्रजातंत्र को गांधी ने कभी मान्य नहीं किया। वो जानते थे जो तोप की नोक पर प्राप्त किया जाता है वह उसी बल पर छीन भी लिया जाता है। इसीलिए उन्होंने अहिंसा के द्वारा जनतंत्र प्राप्त करने का निर्णय लिया। उनका कहना था...युद्ध का विज्ञान शुद्ध और स्पष्ट अधिनायकत्व की ओर ले जाता है। एक मात्र अहिंसा का विज्ञान ही शुद्ध प्रजातंत्र की ओर ले जाने वाला है। अपनी आस्था को प्रतिष्ठित कर गांधी ने दुनिया के सामने आदर्श उपस्थित किया।
अपने दो दशक के विदेशी प्रवास एवं अहिंसा की प्रायोगिक सफलता के साथ अफ्रीका से
90 / अँधेरे में उजाला