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रूप में अहिंसा जगत् में सर्वाधिक कार्यकारी शक्ति है।'64 उनके हृदय में अहिंसा का जो विराट स्वरूप था वह अद्वितीय है। उनकी अहिंसा सारे जगत् के प्रति प्रेम का आह्वान करती है।
गांधी ने लिखा-'अहिंसा का क्रियात्मक रूप क्या है? प्राणीमात्र के प्रति सदभाव। यही शद्ध प्रेम है। क्या हिन्दू शास्त्रों, क्या बाईविल और क्या कुरान, सब जगह मुझे तो यही दिखाई देता है।' प्रेम के रूप में अहिंसा की अवधारणा को मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो अहिंसा को उन्होंने द्वेष का अभाव माना है किसी भी प्राणी के प्रति चाहे वह छोटा हो या बड़ा उसके प्रति द्वेषभाव रखना हिंसा है। भावात्मक शब्दों में प्रेम ही अहिंसा है। यह मनोवैज्ञानिक दशा जब हमारे व्यवहारों
और क्रियाओं में प्रकट होती है तब वह प्रेम और द्वेष रहित अवस्था आत्मपीड़न में प्रकट हो जाती है। अहिंसा का साधक दूसरे की रक्षा के लिए उसके प्रति सद्भावना के लिए स्वयं सभी प्रकार के कष्ट भोगने के लिए तैयार रहता है और आवश्यकता पड़ने पर वह अपने प्राणों को भी न्यौछावर कर देता है। इसलिए गांधी ने क्रियाशील अवस्था में अहिंसा को सभी जीवों के प्रति सद्भावना और प्रेम का पर्याय माना है। उनके शब्दों में दूसरों के लिए प्राणार्पण करना भी प्रेम की पराकाष्ठा है
और उसका शास्त्रीय नाम अहिंसा है। अर्थात् यों कह सकते हैं कि अहिंसा ही सेवा है।165 ये विचार मौलिकता के प्रतीक हैं। अपनी पृष्ठभूमि में उनका हिंसा संबंधी विचार बड़ा सूक्ष्म था।
जीवन के व्यवहार पक्ष में घटित होने वाली हिंसा के बारे में उनका चिंतन था-किसी को गाली देना, उसका बुरा चाहना, उसका ताडन करना, उसे कष्ट पहंचाना सभी कछ हिंसा है। जो मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए दूसरों को कष्ट पहुंचाता है, उनके नाक-कान काटता है, उसे भरपेट खाने को नहीं देता और अन्य उपाय से उसका अपमान करता है, वह मृत्युदण्ड देने वाले की अपेक्षा वहाँ अधिक निर्दयता दिखलाता है। उनकी विशाल दृष्टि में 'तमाम खराब विचार हिंसा है। द्वेषवैर-डाह हिंसा है। किसी का बुरा चाहना हिंसा है। जिसकी जगत् को जरूरत है, उस पर कब्जा रखना भी हिंसा है।' अन्यायी कानून खुद एक किस्म की हिंसा है। हिंसा की यह सूक्ष्म मीमांसा की ओर गतिशील बनने के लिए महत्वपूर्ण है।
अहिंसा क्या है? अहिंसा का जो अर्थ गांधी ने किया उसमें मौलिकता को खोजना नामुमकिन है। 'अहिंसा का धर्म केवल इतना ही नहीं है कि 'जीव न मारो' । क्रोध अथवा स्वार्थ के वश होकर किसी व्यक्ति का अनिष्ट करने के इरादे से उसे दुख देना या उसके देह का नाश करने का नाम हिंसा है। ऐसा न करना ही अहिंसा है। 16" यह अहिंसा की सूक्ष्म परिभाषा है। इसमें हिंसा करने वाले व्यक्ति का प्रमत्त भाव प्रकट हुआ है। अतः हिंसा के मूल का संस्पर्श करने से इस परिभाषा को आदर्श अहिंसा की कोटि में रखा जा सकता है। अहिंसा विराट् स्वरूपा है उसकी भावनात्मक स्थिति का चित्रण किया। अहिंसा का अर्थ है प्रेम का समुद्र, वैरभाव का सर्वथा त्याग। अहिंसा में दीनता, भीरूता न हो। डरकर भागना भी न हो। अहिंसा में दृढ़ता, वीरता, निश्छलता होनी चाहिए।......अहिंसा लूले-लंगड़े प्राणियों को न मारने में ही समाप्त नहीं होती। प्रकटतया गांधी की अहिंसा आत्मनिष्ट एवं नैतिक उसूलों से जुड़ी हुई थी।
अहिंसा के माने पूर्ण निर्दोपिता ही है। अर्थात् 'पूर्ण अहिंसा का अर्थ है प्राणीमात्र के प्रति दुर्भावना का अभाव।' यह मनःस्थिति केवल मनुष्य जाति तक ही सीमित न रहे इसका क्षेत्र हिंस
80 / अँधेरे में उजाला