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के अनुसार-'प्राकृतिक नियमों के प्रयोग द्वारा आश्चर्यजनक बातें उत्पन्न करने वाले वैज्ञानिक की भांति कोई व्यक्ति प्रेम का वैज्ञानिक यथार्थ के साथ प्रयोग करें तो वह इससे अधिक आश्चर्यजनक बातें उत्पन्न कर सकेगा क्योंकि अहिंसा की शक्ति विद्युत् आदि प्राकृतिक शक्तियों से कहीं अधिक अनन्त और सूक्ष्म है।' अहिंसा की अपरिमेय शक्ति में गांधी की अटूट श्रद्धा थी। वे इस संबंधी संकुचित दृष्टि का प्रतिकार कड़े शब्दों में करते ‘यह समझना एक जबर्दस्त भूल है कि अहिंसा केवल व्यक्तियों के लिए ही लाभदायक है, जन-समूह के लिए नहीं। जितना वह व्यक्ति के लिए धर्म है उतना ही वह राष्ट्रों के लिए भी धर्म है।' उन्होंने राष्ट्रीय पैमाने पर अहिंसा धर्म को अपनाकर इसकी विराट् शक्ति का प्रदर्शन दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया।
अहिंसा धर्म और नैतिकता का पर्याय है। उसके दिव्य स्वरूप को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में कैसे लाया जाए? पहल कौन करे? इन्हीं प्रश्नों के बीच युग बीते, सदियां बीती पर समाधान न मिला। गांधी एक ऐसा साहसी एवं फौलादी व्यक्ति था जिसने अहिंसा की चिरपोषित आकांक्षा को आकार दिया। विश्व इतिहास में अहिंसा का एक अभूतपूर्व अध्याय रचकर भावी पीढ़ियों का अहिंसक-नैतिक पथ दर्शन किया। सच्ची आजादी का अहिंसा ही एकमात्र ब्रह्मास्त्र है, इसे प्रयोग की भूमिका पर प्रतिष्ठित किया।
अहिंसा पर अचल आस्था भारत की आजादी में अहिंसा की अहम् भूमिका जग जाहिर है। गांधी का यह दृढ़ विश्वास था कि भारत यदि किसी शर्त पर परतंत्रता की बेड़ियाँ तोड़ सकता है तो वह एक मात्र साधन है-अहिंसा। बल पूर्वक कहा-मैं ऐसा स्वप्न देख रहा हूँ कि मेरा देश अहिंसा द्वारा स्वतंत्रता प्राप्त करेगा और मैं अगणित बार संसार के समक्ष यह बात दुहरा देना चाहता हूँ कि अहिंसा का त्याग कर मैं अपने देश की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं करूँगा। अहिंसा के साथ मेरा परिणय इतना अविच्छिन्न है कि मैं अपनी इस स्थिति से विलग होने की अपेक्षा आत्महत्या कर लेना पसंद करूंगा। वे अपने इस प्रण पर डटे रहे। नाना अवरोधों के बावजूद उनका यह विचार क्षणभर के लिए भी पलटा नहीं।
अहिंसा से ऊंची ताकत उनकी दृष्टि में दूसरी थी ही नहा। उनकी अन्तर आत्मा भारत की स्वतंत्रता इस मार्ग से ही देखती थी। उनके शब्दों में 'अहिंसा से बडी शक्ति मनष्य जाति को मालम नहीं है। इसकी शक्ति या प्रभावशीलता में मेरा विश्वास अटल है और उसी भांति मेरा यह विश्वास भी अटल है कि केवल अहिंसा के ही जरिये स्वतंत्र होने की शक्ति हिन्दुस्तान में है। 183 उनका विचार दिन में उजाले की भाँति स्पष्ट था। उन्होंने देश वासियों के समक्ष अपनी बात स्पष्ट रूप से रखी थी भारत के पास अपनी आजादी के सिर्फ दो रास्ते हैं। या तो अपनी आजादी के लिए
और उस दर्जे तक, सिर्फ अहिंसात्मक साधनों का अवलंबन करे, या हिंसा के पश्चिमी साधनों को तथा उससे जो-जो बातें गृहीत होती हैं; उन सबको बढ़ाने का प्रयत्न करे। पर इस सच्चाई को न भूले कि शस्त्रीकरण की दौड़ में शामिल होना हिन्दुस्तान के लिए अपना आत्मघात करना है।
गांधी ने बलपूर्वक कहा-'भारत अगर अहिंसा को गँवा देता है तो संसार की अन्तिम आशा पर पानी फिर जाता है। जिस सिद्धान्त का गत आधी सदी से मैं दावा करता आ रहा हूँ उस पर मैं जरूर अमल करूँगा और आखिरी साँस तक मैं यह आशा रखूगा कि हिन्दुस्तान अहिंसा को एक दिन अपना जीवन सिद्धांत बनायेगा, मानव जाति के गौरव की रक्षा करेगा।' एक ओर मानव जाति
86 / अँधेरे में उजाला