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दुष्कर कार्य है। जिसकी त्याग चेतना और ज्ञान चेतना का जागरण हो गया है वही व्यक्ति इस मार्ग पर आगे बढ़ सकता है।
गांधी का स्पष्ट घोष था ‘अहिंसा क्षत्रिय का गुण है।' कायर उसका पालन नहीं कर सकता। दया तो शूरवीर ही दिखा सकते हैं। जिस कार्य में जिस अंश तक दया है उस कार्य में उसी अंश तक अहिंसा हो सकता है। इसलिए दया में ज्ञान की आवश्यकता है। अंध प्रेम को अहिंसा नहीं कहते। अंध प्रेम के अधीन जो माता अपने बालक को अनेक तरह से दुलारती है वह अहिंसा नहीं, अज्ञान-जात हिंसा है। मैं चाहता हूं कि खाने-पीने की मर्यादाओं को महत्त्व न देकर लोग उसका पालन करते हुए भी अहिंसा के विराट रूप को, उसकी सूक्ष्मता को, उसके मर्म को समझे। 70 तथ्यतः क्षात्र धर्म अहिंसा और क्षमा प्रधान था इसके अनुपालक बड़े शूरवीर थे। महावीर क्षत्रिय थे। बुद्ध क्षत्रिय थे। वे अहिंसा के अवतार पुरुष कहलाये।। ___ अहिंसा हृदय की उच्चतम भावना है। जब तक हमारा आपसी व्यवहार शुद्ध नहीं है तब तक
पीकारना होगा कि अहिंसा-भाव का स्पर्श तक नहीं हुआ है। गांधी के शब्दों में-'अहिंसा हृदय का गुण है।' इसका खुलासा था कि खाद्या-खाद्य में ही अहिंसा की परिसमाप्ति नहीं होती सूक्ष्म दृष्टि से इन वस्तओं का ख्याल रखना स्तत्य है। परन्त जो अहिंसा परम धर्म है, वह इस अहिंसा से कहीं बढ़कर है। यह परम धर्म मानव का स्वभाव है। अहिंसा मनुष्य जाति का सर्वोच्च स्वभाव है। यदि वह धर्म है तो बड़ी-से-बड़ी बाधाओं का मुकाबला करके भी अपना रास्ता साफ करेगी। अहिंसा को सिद्धांत रूप में प्रस्तुति मिली-'अहिंसा एक अविचल सिद्धांत है। इसके जरिये मानव सृष्टि का विकास हुआ है। जो इस सिद्धांत पर जितनी श्रद्धा और भक्ति से अमल करेगा उतना ही आनंद भोग कर सकेगा।
अहिंसा परमो धर्मः यदि हम अहिंसा की साधना करना चाहते हैं तो हमें अहिंसा शब्द के अर्थ समुद्र में कूद पड़ना ही पड़ेगा। अपने पूर्वजों की जमा की हुई पूँजी में वृद्धि करना ही हमारा धर्म है। 'अहिंसा परमोधर्मः' नामक सूत्र को हम नहीं सुधार सकते परन्तु यदि हमें उस पूँजी के वारिस बने रहना है तो हमें वर्तमान में उसकी अमित शक्ति की खोज करते रहना चाहिए। यह मंतव्य गांधी की सघन आस्था का द्योतक है। व्यावहारिक स्तर पर उनकी दृष्टि में इस सूत्र से बढ़कर कोई आचार नहीं है। यदि मनुष्य अहिंसा का ठीक-ठीक तात्पर्य समझ ले और जीवन के कार्यों में उसका उचित रूप से उपयोग करने लगे तो वह महात्मा और वीर हो जाता है। यदि उसका ठीक-ठीक तात्पर्य न समझा जाय और उचित उपयोग न किया जाय तो मनुष्य कायर, निर्जीव, नीच और वाहियात हो जाता है। अतः अहिंसा को परम धर्म अंगीकार कर लेने से लोक-जीवन की यह आवश्यकता अनायास सिद्ध हो जाती है।
___ अहिंसा विषयक सूक्ष्म सोच को शब्दों का लिबास देते हुए कहा-'अहिंसा का भाव दिखाई देनेवाले में ही नहीं है बल्कि अंतःकरण की राग-द्वेष रहित स्थिति में है। चूंकि अहिंसा आचरण का स्थूल नियम मात्र नहीं है, बल्कि मन की वृत्ति है। जिस वृत्ति में द्वेष की गंध तक न हो वह अहिंसा है' इस रूप में गांधी की अहिंसा विविध विषयी होते हुए भी बड़ी सूक्ष्म और विशाल थी। उनकी अहिंसा केवल अनाघात का ही पर्याय नहीं है, प्रत्युत वह जीवों के प्रति आंतरिक भक्ति और प्रेम को भी अभिव्यक्त करती है।
82 / अँधेरे में उजाला