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पशुओं को अपनाने तक व्या। इस दृष्टि से अहिंसा एक पूर्ण मानसिक स्थिति है। सारी मनुष्य जाति इस लक्ष्य की ओर संभवतः, अनजान में जा रही है। प्रत्येक प्राणी के प्रति आत्मानुभूति की स्थिति में ही अहिंसा फलती-फूलती है। प्राणीमात्र के प्रति जब तक समान अनुभूति नहीं जागती तब तक समभाव भी घटित नहीं होता और बिना समभाव के अहिंसा मात्र आदर्श रहती है जीवन का व्यवहार नहीं बन पाती। अहिंसा के सूक्ष्म स्वरूप का प्रतिपादन मौलिक है-'अहिसा के माने सूक्ष्म जन्तुओं से लेकर मनुष्य तक सभी जीवों के प्रति समभाव।' यह समतामूलक अहिंसा का स्वरूप है। ऐसी विकसित अहिंसा ही व्यक्ति-व्यक्ति के बीच, समाज और राष्ट्रों के बीच जो दुराव बढ़ रहा है, विषमताएं सघन बनती जा रही हैं उसे समानता-एकता का पाठ पढ़ाने में समर्थ होती है।
मानसिक स्तर पर अहिंसा की चर्चा करते हुए गांधी ने कहा-'अहिंसा चित्त की वृत्ति भी है और तज्जात कर्म भी है, अहिंसा का अर्थ है-औरों को तकलीफ न देना।' इस निवृत्ति मूलक परिभाषा के साथ अहिंसा का सकारात्मक स्वरूप भी बतलाया 'अहिंसा अहानिकारकता की सिर्फ एक नकारात्मक स्थिति ही नहीं है बल्कि यह स्नेह की सकारात्मक स्थिति है और एक ऐसी स्थिति है जिसमें बुरा करने वालों के साथ भी अच्छा किया जाता है। 167 उनकी यह अटूट आस्था थी कि बुराई पर विजय भलाई से ही पाई जा सकती है। गांधी के शब्दों में प्यार करने वाले से प्यार करना अहिंसा नहीं। अहिंसा उसे कहते है जब नफरत करने वाले के साथ प्यार किया जाए। वे इस प्यार के कानून को मानने और उसके साथ चलने की कठिनाई से भी वाकिफ थे। नफरत करने वाले से प्यार करना सबसे कठिन है। पर ईश्वर कृपा से इस कठिन कार्य को भी संपादित किया जा सकता है। यह उनकी अनुभूत सच्चाई थी।
सामान्यतया अहिंसा का अर्थ किसी को न मारना किया जाता है या किसी को चोट न पहँचाना माना जाता है पर गांधी की अहिंसा इससे भी आगे है। वे कहते–'सजीव चीजों को चोट न पहुँचाना अहिंसा का एक हिस्सा जरूर है। पर इसे बहुत कम अभिव्यक्त किया गया कि अहिंसा का सिद्धांत अनिष्ट सोच, अनुचित शीघ्रता, नफरत और दूसरों का बुरा ग्रहण नहीं करता। 168 अहिंसा का सिद्धांत नैतिक पतन, व्यवहारिक विद्रुपता और आध्यात्मिक हानि को बर्दास्त नहीं करता।
अहिंसा क्या है? इस प्रश्न के समाधान में गांधी के विविध विचार है। जिनमें नवीनता, मौलिकता और उच्चता के दर्शन होते हैं उनकी दृष्टि में 'अहिंसा प्रचंड शक्ति है। उसका पूरा तेज हम न देख सकते न माप सकते हैं। हममें से किसी-किसी को ही उसकी झांकी भर मिल जाती है।' इसकी झांकी पाने वाले साक्षात्द्रष्टा तपस्वी ने चारों और फैली हुई हिंसा में से अहिंसा देवी को संसार के सामने प्रकट करके कहा-हिंसा मिथ्या है, माया है, अहिंसा ही सत्य वस्तु है। ब्रह्मचर्य, अस्तेय, अपरिग्रह भी अहिंसा के लिए ही है। अहिंसा सत्य का प्राण हैं। उनकी दृष्टि में पूर्ण सत्य और पूर्ण अहिंसा में भेद नहीं; सत्य और अहिंसा-सिक्के की दो पीठों की भाँति एक ही सनातन वस्तु के दो पहलुओं के समान है। समकोण सब जगह एक ही प्रकार का होता है। दूसरे कोण अगणित हैं। अहिंसा और सत्य ये सब धर्मों के समकोण हैं।
विराट् अहिंसा परिकल्पना को प्रस्तुति दी-'अहिंसा एक महाव्रत है। तलवार की धार पर चलने से भी कठिन है। देहधारी के लिए उसका सोलह आना पालन असंभव है। उसके पालन के लिए घोर तपश्चर्या की आवश्यकता है। तपश्चर्या का यहाँ अर्थ त्याग और ज्ञान करना चाहिए। 16 अहिंसा संबंधी यह सोच गांधी की अपनी निराली है। आम लोग अनुभव करते है कि अहिंसा का पूर्ण पालन
महात्मा गांधी का अहिंसा में योगदान / 81