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शस्त्रीकरण ऐतिहासिक संदर्भ निःशस्त्रीकरण के विमर्श से पूर्व शस्त्रीकरण के ऐतिहासिक संदर्भ पर दृष्टिपात अपेक्षित है। अपनीअपनी सीमा सुरक्षा हेतु अधिकारीवर्ग सदैव शस्त्रीकरण के प्रति सजग रहा है। अध्यात्म रामायण का प्रसंग है। जब भरत माताओं को लेकर राम से पुनः आगमन की प्रार्थना करने जा रहे थे उस समय राजा गुह को शंका हुई कि भरत बड़ी सेना लेकर आ रहे हैं। कहीं मेरा राज्य न छीन लें। आदेश जारी किया-'मेरे जातिवाले अस्त्र-शस्त्र लेकर सावधानी से सब ओर देखते हुए चौकस रहें और सब नावों को खींचकर गंगा के बीच में खड़ी कर दें।122 जब भरत का राम मिलन आशय ज्ञात हुआ तब गुह निश्चित हो गये और सेना को जाने की सहर्ष अनुमति दे दी। इससे स्पष्ट होता है कि राज्य सुरक्षा हेतु अस्त्र-शस्त्र का उपयोग प्राचीन काल से होता रहा है आतंक फैलाने के लिए नहीं।
अध्यात्म रामायण में उल्लेख मिलता है कि शस्त्ररहित राम को स्वयं देवेन्द्र ने रावण के साथ लड़ने हेतु हरे रंग के घोड़े, रथ, देव सारथि मातलि, ऐन्द्र धनुष, अभेद्य कवच, खङ्ग और दो दिव्य तूणीर भेजें । 23 जब राम-रावण ने आमने-सामने मोर्चा संभाला उस समय महात्मा राम और बुद्धिमान् रावण का महाभयानक और रोमांचकारी घोर युद्ध होने लगा। रावण के आग्नेयास्त्र को आग्नेयास्त्र से और देवास्त्र को देवास्त्र से काटा। युद्ध में प्रयुक्त अस्त्र-शस्त्र की प्रचण्डता का एक उदाहरण ही पर्याप्त होगा-रावण के धनुष से छूटे हुए बाण, जो स्वर्णमय पंख से भासमान हो रहे थे, महाविषधर सर्प होकर रधुनाथ के चारों ओर गिरने लगे। जिनके मुख से अग्नि की लपटें निकल रही थीं के उन सर्पमुख-बाणों से उस समय सम्पूर्ण दिशा-विदिशाएं व्याप्त हो गयी। राम ने जब रणभूमि में सब ओर सर्पो को व्याप्त देखा तो महाभयंकर गरुड़ाशस्त्र छोड़ा। बाण सों के शत्रु गरुड़ होकर जहाँ-तहाँ सर्परूप बाणों को काटने लगे। इससे पुष्ट होता है कि प्राचीन काल से ही अस्त्र-शस्त्रों की प्रचंडता बरकरार है। पर इतना तो स्पष्ट है कि वे अस्त्र-शस्त्र निरपराध का नुकसान सहसा नहीं करते थे। परंतु आधुनिक अस्त्र-शस्त्र हित-अहित के विवेक से विकल अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हैं।
पाषाण-युग से अणुयुग तक जितने भी उत्पीड़क और मारक शस्त्रों का आविष्कार हुआ है, वे निष्क्रिय-शस्त्र (द्रव्य-शस्त्र) हैं। उनमें स्वतः प्रेरित घातक-शक्ति नहीं है। भगवान् ने कहा-गौतम ! सक्रिय-शस्त्र (भाव-शस्त्र) असंयम है। इसी का संवादी-'द्रव्य शस्त्र के तीन प्रकार हैं-किंचित् स्वकाय शस्त्र, किंचित् परकायशस्त्र और किंचित् उभयकायशस्त्र। असंयम भावशस्त्र है। 125 विध्वंस का मूल वही है। निष्क्रिय-शस्त्रों में प्राण फूंकने वाला भी वही है। आचार्य महाप्रज्ञ लिखते हैं-वास्तविक शस्त्र है भाव-शस्त्र और वह है असंयम। प्राणीमात्र के अन्तःकरण में जो असंयम है, वही वास्तविक शस्त्र है और वही इन सारे शस्त्रों का निर्माण कर रहा है। आज निःशस्त्रीकरण का प्रश्न बलवान बना हुआ है। शक्ति संपन्न देश प्रक्षेपास्त्रों को कम करें, दूर या लघुमार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों को कम करें. टेकों को समाप्त करें. यह चर्चा का विषय बना हआ है। पर इन सबके पीछे जो चर्चा होनी चाहिए वह नहीं हो रही है। इन सबके मूल में असंयम है। और उसे कम करने की चर्चा बहुत कम चलती है। असंयम कम होगा तो बन्दूकें, तोपें, तलवारें मनुष्य के लिए खतरनाक नहीं बनेगी। 26 असंयम से उपजी आकांक्षा और विस्तारवादी मनोवृत्ति के कारण ही एक देश दूसरे देश के विरोध में शस्त्र सज्जित होता है।
अहिंसा एक : संदर्भ अनेक / 65