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शस्त्रीकरण के हेतु को मार्मिक प्रस्तुति भगवान् महावीर ने दी - 'यह मनुष्य चिरकाल तक जीने के लिए, प्रतिष्ठा, सम्मान और प्रशंसा के लिए, जन्म-मृत्यु से मुक्त होने के लिए, दुःख मुक्ति के लिए-शस्त्रीकरण करता है। 27 निश्चित रूपेण ये शस्त्रीकरण की अन्तहीन परंपरा के प्रमुख कारण
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समग्र दृष्टि से शस्त्र को ग्रहण करते हुए ठाणं सूत्र में इसके दस प्रकार बतलाये गये हैं-अग्नि, विष, लोण, चिकनाई, क्षार, दुष्प्रयुक्त मन, वचन, काया, भाव एवं अविरति । इन प्रकारों में द्रव्य और भावशस्त्र का समान प्रतिशत है। जितने प्रतिशत में भौतिक पदार्थ शस्त्र बनने की क्षमतावाले हैं उतने ही व्यक्ति के भीतर शस्त्र निर्मिति के कारण विद्यमान हैं।
निःशस्त्रीकरण ऐतिहासिक संदर्भ
आज का युग अणु-परमाणु युग है । अणु अस्त्रों का युग है । इनके प्रायोगिक परिणामों से मानव मन आतंकित है। अपने अस्तित्त्व की रक्षा हेतु अहिंसा की खोज कर रहा है, उसका मूल्यांकन कर रहा है। एक ओर अणु-परमाणु अस्त्रों का युग है तो दूसरी ओर अहिंसा का युग ।
निःशस्त्रीकरण का सर्व प्रथम भगवान् महावीर का स्वर मुखर हुआ । श्रावक की आचार संहित में विधान किया- 'मैं शस्त्र का निर्माण नहीं करूंगा, उसका आदान-प्रदान नहीं करूँगा । शस्त्र के पुर्जो का संयोजन नहीं करूंगा। 128 आचारांग के शस्त्र -परिज्ञा अध्ययन में निःशस्त्रीकरण के सूक्ष्म सिद्धांतों की प्ररूपणा की गई है। जिसका स्पष्ट प्रतिपाद्य है कि शस्त्रीकरण मनुष्य जाति के लिए संहार का कारण बन सकता है। अतः मानव जाति के संरक्षण हेतु निःशस्त्रीकरण का मूल्य आंके, उसे समझे और जीवन में अधिक-से-अधिक अपनाये। निःशस्त्र के प्रयोग का अर्थ है - संयम की चेतना का विकास। यह मानव जाति के लिए कल्याण का हेतु है, विकास का सेतु है । निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही मानव जाति सुख और शांति से रह सकती है ।
शस्त्र शक्ति के संबंध में गांधी के विचार सर्वथा मौलिक थे। उनकी दृष्टि में अहिंसा एक ऐसा शस्त्र है जिसका प्रयोग कभी निरर्थक नहीं जाता। इसमें अनन्त शक्ति है गांधी के शब्दों में- 'जिसके हाथ में अहिंसा रूपी शस्त्र है वह कभी निःशस्त्र नहीं। उसके पास पाश्विक शस्त्र भले ही न हों किन्तु दिव्य शस्त्र हैं। अहिंसा ब्रह्मास्त्र है और उसका प्रतिकार करने वाला शस्त्र विधाता ने न तो आजतक बनाया है, न कभी बना सकेगा। 29 यह गांधी की अटूट अहिंसा आस्था का प्रतीक है । उन्होंने इस तथ्य पर बल दिया- 'अहिंसा तो एक अनुपम अद्वितीय शक्ति है । संसार में इसके मुकाबले की कोई शक्ति नहीं है। यदि दुनिया के सारे अस्त्र-शस्त्रों को तराजू के एक पलड़े पर रख दिया जाय और अहिंसा को दूसरे पर, तो अहिंसा का ही पलड़ा भारी होगा ।' पुष्ट होता है कि गांधी के विचारों में अहिंसा स्वयं सर्वश्रेष्ठ शक्तिमान् है ।
शस्त्रशक्ति की सीमा और बुराइयाँ देखते हुए गांधी ने इसकी निरर्थकता को खुले आम प्रकट किया—मैं यहां पर अहिंसा संबंधी पचास वर्ष के अनुभव के बल पर यह बताना चाहता हूँ कि पाश्विक शक्ति के समक्ष यह (अहिंसा) निश्चित रूप से एक ऊँची शक्ति है । सशस्त्र सैनिक की शक्ति का मुख्य आधार तो उसके शस्त्रों पर होता है। उसके शस्त्र, उसकी बन्दूक अथवा तलवार ले लो, तो सामान्य रूप से वह असहाय हो जाता है ।.... किन्तु जिस व्यक्ति ने अहिंसा के सिद्धान्त को सच्चे अर्थों में समझ लिया है, उसका शस्त्र ईश्वर प्रदत्त शक्ति होती है। इसका मुकाबला संसार में और कोई शक्ति नहीं कर सकती। 30 अणुबम और अहिंसा दो शक्तियों के चुनाव में गांधी ने सदैव अहिंसा
66 / अँधेरे में उजाला