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विष्णु के उष्ट प्रति पुष्पों में अहिंसा का स्थान पहला है। इसकी अद्वितीयता को प्रकट किया-'अहिंसा के समान न कोई दान है, न कोई तपस्या।74 इस कथन में अहिंसा के महात्म्य का स्पष्ट निदर्शन है। सभी धर्मों के स्वरूप की अवगति अहिंसा ज्ञान में समाहित है। इसे उपमालंकार में प्रस्तुत दी- 'जैसे हाथी के पदचिन्ह में अन्य सब प्राणियों के पदचिन्ह समा जाते हैं, उसी प्रकार सभी धर्म अहिंसा से प्राप्त हो जाते हैं।' अर्थात किसी भी धार्मिक अवबोध हेतु अहिंसा का आचरण अनिवार्य है। __अहिंसा की शक्ति को सर्व कामनापूर्णा बतलाया- 'हे राजन् ! वह अहिंसा सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाली तथा पापों से छुड़ाने वाली है। इससे अनुमित होता है कि अहिंसा को पुराणों में कितना ऊँचा स्थान प्राप्त था। वैशिष्ट्य इस बात का है कि इसे कर्म बंधन मुक्ति का सशक्त साधन बतलाया गया है-'मन, वचन और काया से जो पूरी तरह अहिंसक रहते हैं और जो शत्रु
और मित्र दोनों को समान दृष्टि से देखते हैं, वे कर्म-बन्धन से छूट जाते हैं। सभी जीवों पर दया करने वाले, सभी जीवों में आत्मा का दर्शन करने वाले और मन से भी किसी जीव की हिंसा न करने वाले स्वर्गों के सुख भोगते हैं। 76 जाहिर है अखंड अहिंसा का अनुपालक, समतादृष्टिवान् कर्मबंधन की प्रक्रिया का उच्छेदकर सुख प्राप्ति के मार्ग को प्रशस्त करता है।
पुराणों में नाना प्रकार के उत्पात और उनकी शान्ति के उपाय वर्णित हैं-अठारह प्रकार की शान्तियों में समस्त उत्पातों का उपसंहार करने वाली अमृता, अभया और सौम्या-ये तीन सर्वोत्तम हैं। यहाँ अभया अहिंसा का द्योतक शांतिमंत्र प्रतीत होता है।
श्रीमद्भागवत् महापुराण, शिवपुराण, श्री नरसिंहपुराण, संक्षिप्त ब्रह्मवैवर्त पुराणों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उनमें अहिंसा का स्पष्ट रूप से कोई उल्लेख नहीं है पर विविध तरह के प्राकृतिक प्रकोपों की, ग्रहनक्षत्रों की शांति हेतु नाना मंत्रों का उल्लेख किया गया है, जिसे हम अहिंसा का विधिरूप-विकासात्मक रूप कह सकते हैं। अहिंसा की विकस्वर फुलवारी को देखकर ही भारत भूमि की गौरवपूर्ण गाथा का गुणानुवाद श्री विष्णुपुराण में किया गया- 'देवगण निरंतर गान करते हैं कि जिन्होंने स्वर्ग और अपवर्ग के मार्गभूत भारतवर्ष में जन्म लिया वो धन्य है। वास्तव में स्वर्ग और मोक्ष प्रदायक अहिंसाधर्म के कारण ही भारत भूमि का देवों द्वारा गुणगान हुआ।
तथ्यतः शांति मंत्रों द्वारा प्राकृतिक संपदाओं से मैत्री, ग्रह-नक्षत्रों की अनुकूल दृष्टि की कामना अहिंसा के क्षेत्र में किये गये सार्थक उपक्रम हैं। विविध उपाख्यानों के माध्यम से, व्याघ्र जैसे हिंसक प्राणी के सन्मुख गौ के उपदेशामृत की संकल्पना अपने आप में मौलिक है। इसके माध्यम से चराचर सक्ष्म प्राणी जगत के अभयदान का जो चित्राँकन हआ है. इसे पराणों में अहिंसा के विकास का साक्ष्य माना जा सकता है।
अहिंसा के ऐतिहासिक स्वरूप में कतिपय महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठित ग्रंथों-पंथों के आधार पर अहिंसा के सूत्र एवं विकासात्मक तथ्यों को अन्वेषणपूर्वक रखा गया है। अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अहिंसा के विकास में न्यूनाधिक्य दृष्टि गोचर होता है। पर यह सच है कि इसका अस्तित्व ध्रुवरूप से सदैव कायम रहा है।
46 / अँधेरे में उजाला