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विभिन्न दर्शनों में अहिंसा
दार्शनिक विचारधारा का बीजारोपण अंगोपांग, वेदादिमूल ग्रंथों में हुआ। उपनिषद्, रामायण, महाभारत, गीता, भाष्य-टीकाओं में निरंतर विकसित होते हुए चिंतन की चरम परिणति स्वरूप भारतीय दर्शन की प्रतिष्ठा हुई। अनुभूति से आप्लावित जीवन को सार्थकता प्रदान करने वाला आध्यात्मिक चिंतन 'दर्शन' कहलाया। इसमें अध्यात्म विद्या या मोक्ष शास्त्र तथा ज्ञान मीमांसा-प्रमाण शास्त्र पर व्यापक एवं गंभीर विचार हुआ। भारतीय दर्शन की अनेक विशेषताएँ हैं, जिनमें पारलौकिक सर्वोच्च सुख (मोक्ष) की प्राप्ति सर्वोत्कृष्ट है। एक आदर्श व्यक्तित्व की परिकल्पना में-'मानव के सर्वतोमुखी विकास को दृष्टि में रखकर ही भारतीय आचार्यों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रूप पुरुषार्थ चतुष्ट्य की सिद्धि में ही मानव कर्त्तव्य की इति श्री समझी।' दर्शन के आलोक में चरम परिणति-मोक्ष की प्राप्ति हेतु शुभ कर्म, तप-त्याग, संयम रूप अहिंसा की आराधना स्वीकृत हुई। इस रूप में अहिंसा भारतीय दर्शन का प्राण तत्त्व बनी।
अहिंसा भारतीय मनीषा की महत्त्वपूर्ण खोज है। डॉ. रामजीसिंह के अनुसार अहिंसा को केवल जैनों ने ही नहीं, बल्कि बौद्ध एवं वैदिक दर्शनों ने भी स्वीकार किया है। भारतीय चिंतन धारा की यह विशेषता है कि अहिंसा का क्षितिज केवल मानवों के लिए ही नहीं, मानवेत्तर प्राणियों के लिए खोल दिया। अभी भी जैनों के अलावा हिंदू-वैष्णव आदि कई समाज के लोग निरामिष हैं। अहिंसा का पर्यायवाची शांति तो वैदिक सभ्यता का प्राण है और वही शांति की भावना मानव और पशु-पक्षियों से भी आगे वृक्षों एवं जल आदि तक विस्तृत है। 'द्यो शान्ति' से लेकर 'आपः शांति', 'अंतरिक्ष शांति' आदि मंत्र है। विभिन्न संदर्भो में अहिंसा की सूक्ष्म मीमांसा भारतीय दर्शन का विमर्थ्य बिन्दु रहा है। जैन-दर्शन में अहिंसा अहिंसा के विराट् स्वरूप की परिकल्पना में 'जैन-दर्शन' अग्रणी है। 'जैन' शब्द मात्र से अहिंसा साकार हो उठती है। जैन-दर्शन एवं अहिंसा एक दूसरे के पर्यायवाची जैसे प्रतीत होते हैं। अहिंसा की अर्थात्मा 'जैन' शब्द के साथ इस प्रकार घुल-मिल गयी है कि इसका विभाजन नहीं किया जा सकता। वस्तुतः धर्म मात्र अहिंसा को आगे किये चलते हैं। कोई भी धर्म ऐसा नहीं, जिसका मूल या प्रथम तत्त्व अहिंसा न हो। फिर जैन धर्म के साथ अहिंसा का ऐसा तादात्म्य क्यों? समाधान में कुछ नये तथ्य उजागर होते हैं। यथा
. षड्जीव निकाय का सूक्ष्म अनुभूति परक निरूपण। . अहिंसा का शक्ति सापेक्ष प्रतिपाद-अणुव्रत-महाव्रत रूप।
विभिन्न दर्शनों में अहिंसा / 47