Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.१ म. ५ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् ८३ तथैव अपर्याप्तकबादरपृथिवीकायिकवदेव पर्याप्तका अपि बादरपृथिवीकायिकै केन्द्रियमयोगपरिणताः पुद्गलाः स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणता एव भवन्ति । एवं चउक्कएणं भेएणं जाव वणस्सइकाइया' एवं प्रकारेण चतुष्केण भेदेन सूक्ष्म-बादर-पर्याप्तका-पर्याप्तकरूपेण चतुर्विधाः यावत्-अपकायिक-तैनसकायिक-वायुकायिक-वनस्पतिकायिकैकेन्द्रियप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः स्पर्शे - न्द्रियप्रयोगपरिणता एव भवन्ति । 'जे अपज्जत्ता बेइंदिय पओगपरिणया ते जिभिदियफासिंदियपओगपरिणया' ये अपर्याप्तकाः द्वीन्द्रियप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः प्रज्ञप्ताः ते जिहवेन्द्रिय-स्पर्शेन्द्रियप्रयोगपरिणता भवन्ति, तथा 'जे पज्जत्ता बेइंदिया एवं चेव' ये पर्याप्तकाः द्वीन्द्रियपयोगपरिणताः पुद्गलाः प्रज्ञप्ताः ते एवमेव-दीन्द्रियप्रयोगपरिणता एव भवन्ति 'एवं जाव चउरिदिया' परिणत ही होते हैं । ‘एवं पज्जत्तगा वि' अपर्याप्तक बादरपृथिवीकायिक की तरहसे ही पर्याप्तक बादरपृथिवीकायिक एकेन्द्रियप्रयोग परिणतपुदगल भी केवल एक स्पर्शन इन्द्रियप्रयोगपरिणत ही होते हैं । 'एवं चउक्कएणं भेएणं जाव वणस्सइकाइया' इस तरह सूक्ष्म, बादर, पर्याप्तक अपर्याप्तकरूप चार भेदसे चार प्रकारके अप्कायिक, तैजसकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक एकेन्द्रियप्रयोगपरिणतपुद्गल एक केवल स्पर्शन इन्द्रियप्रयोग परिणत ही होते हैं। 'जे अपज्जत्तगा बेइंदियपओगपरिणया ते जिभिदिय फासिंदियपओगपरिणया' जो अपर्याप्तक बेइन्द्रियप्रयोगपरिणत पुद्गल कहे गये हैं, वे जिह्वाइन्द्रिय
और स्पर्श नइन्द्रियके प्रयोगसे परिणत होते हैं तथा 'जे पज्जत्ता बेइंदिया एवं चेव' जो पुद्गल पर्याप्तक बेइन्द्रिय जीवकी दो इन्द्रियोंके प्रयोगसे परिणत कहे गये हैं वे भी जिह्वा इन्द्रिय और स्पर्श नइन्द्रिय इन दोइन्द्रियोंके प्रयोगसे परिणत होते हैं एवं जाव चउरिदिया' २५शन्द्रियना प्रयोथी ०४ परिणत ५ छे. 'एवं पज्जत्तगा वि' अपर्याप्त मा६२ પૃથ્વીકાયિકની જેમ જ પર્યાપ્તક બાદર પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિય પ્રોગપરિણત પુદગલે પણ में मात्र स्पेशन्द्रिय प्रयोगपरिणत डाय छे. 'एवं चउक्कएणं भेएण जाव वणस्सइक्काइया' से प्रभारी सूक्ष्म, मा६२, पर्याप्त मने मात४३५ यार लेनी અપેક્ષાએ અપૂકાયિક, વૈજ:કાયિક, વાયુકાયિક અને વનસ્પતિકાયિક એકેન્દ્રિય પ્રયોગपति स प ४ मात्र स्पेशेन्द्रिय प्रयोगपरिणत हाय छे. 'जे अपज्जत्तगा बेदिय पओगपरिणया ते जिभिदियफासिदियपओगपरिणया' 2 मति : ઠીન્દ્રિય પ્રોગપરિણત પુદગલ કહ્યાં છે, તેઓ જિહવાઇન્દ્રિય અને શેન્દ્રિયના પ્રયોગથી
श्री. भगवती सूत्र :