Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 758
________________ ७४६ भगवतीसत्रे सरीरेण विचत्तारि दंडगा भाणियन्त्रा, नवरं पंचमक्रिरिया न भन्नई' एव मुक्तरीत्या यथा औदारिकशरीराणाम् चत्वारो दण्डका मणिताः तथैव वैक्रिय शरीरेणाऽपि चत्वारो दण्डका भणितव्याः, नवरं विशेषस्त्वत्र पञ्चम क्रिया न भण्यते वक्तव्या वैक्रियशरीरिणः प्राणातिपातस्य कर्तुमशक्यत्वादितिभावः, 'सेस तं वेत्र' शेषम् अवशेषं तदेव पूर्वोक्तानुसारमेव वक्तव्यम्, 'एवं जहा araj तहा आहारगंपि, तेयगंपि, कम्मगं पि, भाणियन्त्र' एवम् उक्तरीत्या यथा-क्रियं शरीरमाश्रित्य दण्डक उक्तस्तथैव आहारकमपि शरीरमाश्रित्य तैजमपि शरीरमाश्रित्य, कार्मणमपि शरीरमाश्रित्य भणितव्यं वक्तव्यम् 'एक्केओरालिय सरीराणं चत्तारि दंडगा भणिया तहा वेडव्वियसरी रेण वि चतारी दंडगा भाणितव्वा नवरं पंचमकिरिया न भन्नइ' जिस प्रकार से औदारिक शरीरों के चार दण्डक कहे गये हैं उसी तरह से वैक्रिय शरीर को लेकर भी चार दण्डक कह लेना नाहिये । वैक्रिय शरीग्वाले का प्राणातिपात करना-घात करना - अश क्य है इसलिये यहां पर पंचम क्रिया नहीं कही गई है - यही यहां विशेषता है। 'सेसं तंवेव' बाकी का सब कथन कथन के अनुसार ही कहना चाहिये । ' एवं जहा आहारगं वि, तेयगं पि, कम्मगं पि भाणियत्वं' जिस तरह से arer शरीर को आश्रित करके दण्डक कहा गया है, उसी तरह से आहारक शरीर को भी आश्रित करके, तैजस शरीर को भी आश्रित करके और कार्मण शरीर को भी आश्रित करके दण्डक कहना चाहिये । इस तरह एक शरीर में चार चार दण्डक हो जाते हैंसगरीरेण विचत्तारि दंडगा भाणियन्त्रा - नवरं पंचमकिरिया न भन्नड़ જેવીરીતે ઔદારિક શરીરના ચાર દડક કહેવામાં આવ્યા છે, એજ રીતે નૈષ્ક્રિય શરીર વિષયક પણ ચાર દંડક કહેવા જોઇએ. નૈષ્ક્રિય શરીરવાળા જીવને ઘાત કરવાનું અશકય હાવાથી, અહીં પાંચમી ક્રિયા કહેવામાં આવી નથી. એટલી જ અહીં વિશેષતા છે. 'सेसं तं चेत्र ' जाडीनुं समस्त स्थन पडेलां उरवामां आवेला उथन प्रभाो समन्वु. ' एवं जहा वेउव्जियं - तहा आहारगं वि तेयगं पि, कम्मगं पि भाणियन्त्रं ' જેવી રીતે વૈયિ શરીરને આશ્રિત કરીને ચાર ઈંક કહેવામાં આવ્યા છે, એજ પ્રમાણે આહારક, વૈજસ અને કર્માંણુ શરીરને આશ્રિત કરીને પણ ચાર ચાર દડક કહેવા જોઈએ. श्या रीते प्रत्येक शरीरना यार यार : थाय छे फेम समन्वु ' एक्केके चत्तारि पहिले कहे हुए वेडव्वियं-तहा " શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬

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