Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 776
________________ भगवतीसूत्रे वालाश्चापि भवथ, ततः खलु ते अन्ययथिकास्तान स्थविरान् भगवत एवम् अवादिषुः-केन कारणेन वयम् अदत्तं गृहीमो यावत् एकान्तबालाश्चापि भवामः ? ततः खलु ते स्थविरा भगवन्तस्तान अन्ययथिकान् एवम् अवादिषुः- ययं खलु आर्याः ! दीयमानम् अदत्तं तदेव यारत् गृहपतेः खलु, नो ग्वलु तत् युष्माकम् , तेन खलु ययम् अदत्तं गृहणीथ, तदेव यावद् एकान्त बालाश्चापि भवथ ।। मु० १ ॥ अदिन्न साइजह तएणं अजो तुम्भे अदिन गेण्हमाणा जाव एगंतबाला याचि भवह) हे आर्यो! तुम लोग विना दी हुई वस्तु को लेते हो, विना दी हुई वस्तु का आहार करते हो, और विना दी हुई वस्तु को दूसरों को ग्रहण करने की अनुमति देते हो। इसलिये तुम लोग असंयत और अविरत बने रहकर त्रिविध प्राणातिपात आदि का त्रिविधरूपसे परित्याग नहीं करने के कारण एकान्त बाल हो (तएणं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी-(केण कारणेणं अम्हे अदिन्न गेण्हामो, जाव एगंतबालायावि भवामो) इसके बाद उन अन्यपृथिकों से उन स्थविर भगवंतों से ऐसा पूछा-हे अर्यों। हम लोग किस कारणे से विना दी हुई वस्तु को ग्रहण करनेवाले कहे गये हैं यावत् एकान्तबाल कहे गये हैं। (तएणं ते थेरे भगवंते ते अन्नउत्थिए एवं वयासी) इस प्रकार उन अन्यथिकों के पूछने पर उन स्थविर भगवंतों ने उनसे उत्तर के रूप में इस प्रकार से कहा- (तुझे णं भुंजह, अदिन्नं साइज्जह, तएणं अज्जो ! तुम्भे अदिन्नं गेण्डमाणा जाव एगंतवाला यावि भवह) 3 आर्या ! तमे हीदी महत परतुने अणु ४ छ। मने અદત્ત વસ્તુ લેવાની બીજાને અનુમતિ આપે છે. તેથી હે આ ! તમે લેકે અસંયત અને અવિરત દશામાં ચાલુ રહીને ત્રિવિધ પ્રાણાતિપાત આદિનું ત્રિવિધરૂપે સેવન કરે छ।. तेने। परित्याग नही ४२वाथी तमे सान्तमा छ।) (तएणं ते अन्नउत्थिया ते थेरे भगवंते एवं वयासी केण कारणेणं अम्हे अदिन्न गेण्डामो, जाव एगंतबाला यावि भवामो ?) त्यारे ते अन्यतया ते स्थविर ममताने मेवा પ્રશ્ન પૂછયે કે હે આર્યો! તમે અમને અદત વસ્તુને ગ્રહણ કરનારા યાવત એકાન્તબાલ AL ४२ ४ ! (तएणं ते थेरे भगवंते ते अन्नउत्थिए एवं वयासी) त्यारे ते स्थविर सता ते मन्यतायिने २॥ प्रमाणे -(तुज्झे णं भंते ! अज्जो ! दिज्जमाणे अदिन्ने तं चेव जाच गाहावइस्स, णो खलु तं तुझे, तएणं तुम्भे अदिन्नं गेण्हह तंचेच जाव एतबाला यावि भवह) श्री. भगवती सूत्र :

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