Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.७ म.३ गतिपपाताध्ययननिरूपणम् ८०७
गतिप्रपाताध्ययनवक्तव्यता । मुलम् -'कइविहे गं भंते ! गइप्पवाए पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे गइप्पवाए पण्णत्त, ! तंजहा-पयोगगई, ततगई, बंधणछेयणगई, उववायगई, विहायगई, एत्तो आरब्भ, पयोगपयं निरवसेसं भाणियत्वं जाव सेत्तं विहायगई, सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति' ॥३॥ अट्ठमसयस्स सत्तमो उद्देसो सम्मत्तो।। __छाया-कतिविधः खलु भदन्त ! गतिमपातः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! पञ्च. विधो गतिमपातः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-प्रयोगगतिः, ततगतिः, बन्धनच्छेदनगतिः, उपपातगतिः, विहायोगतिः, इत आरभ्य प्रयोगपदं निरवशेष भणितव्यम् , यावत् सा एषा विहायोगतिः, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० ३ ॥
अष्टमशतकस्य सप्तम उद्देशकः समाप्तः ।
गतिप्रपाताध्ययनवक्तव्यता 'कइविहे णं भंते । गइप्पवाए पण्णत्त' इत्यादि ।
सूत्रार्थ- (कइविहेणं भंते । गइप्पवाए पण्णत्ते) हे भदन्त । गतिप्रपात कितने प्रकारका कहा गया है ? (गोयमा) हे गौतम ! (पंचविहे गइप्पवाए पण्णत्ते) गतिप्रपात पांच प्रकारका कहा गया है। (तंजहा) जैसे- (पओगगई, ततगई, बंधणछेयणगई, उववायगई, विहायगई) प्रयोगगति, ततगति, बंधनच्छेदनगति, उपपातगति और विहायोगति (एत्तो आरब्भ पओगयंचनिरवसेसं भाणियव्वं जाव से स विहायगई सेव भंते ! सेवं भंते ! ति) यहांसे लेकर प्रयोगपद पूरा कहलेना चाहिये यावत् वह यह विहायोगति है- यहांतक. हे
ગતિપ્રપાતાધ્યયનની વકતવ્યતા'कइविहे गं भत्ते ) गइप्पवाए पण्णत्ते ?'सूत्रार्थ- (काविहे गं भंते ! गइप्पवाए पण्णत्ते ? ) महन्त ! गतिप्रयातना seal sR ४ा छ ! ( गोयमा) 3 गौतम ! (पंचविहे गइप्पवाए पाते) तिप्रपात पांय ना 30 छ. (तंजहा) पांयानी प्रमाणे छे. (पओगगई) प्रयापति,(ततगई) ताति, (बंधण छेयणगई) धन छैन गति, (उवधायगई) S५पातति (विहायगई) मने पिलाया गति (एत्तो आरम्भ पोगपयं निरवसेस भाणियव्य जाव सेत्त विहायगई-सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति) અહીંથી શરૂ કરીમ “તે આ વિહાગતિ છે” ત્યાં સુધીનું પ્રજ્ઞાપનાનું ૧૬મુ “પ્રયાગ, પદ
श्री.भगवती.सत्र:
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