Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ २.६ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ३९७ भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? गौतम ! नो ज्ञानिनः, अज्ञानिनः, सन्ति एकके द्वयज्ञानिनः, त्रीणि अज्ञानानि भजनया । आभिनिबोधिकज्ञानलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? गौतम ! ज्ञानिनः, नो अज्ञानिना, सन्ति एकके विज्ञानिनः त्रीणि ज्ञानानि चत्वारि ज्ञानानि भजनया। तस्य अलब्धिकाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? (तरस अलद्धीया णं भंते ! जीवा कि नाणी अन्नाणी) हे भदन्त । ज्ञान लब्धिरहित जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (णो णाणी, अन्नाणी) हे गौतम ! ज्ञानकी लब्धि रहित जीव ज्ञानी नहीं होते हैं अज्ञानी होते हैं। (अत्थेगइया दु अन्नाणी, तिणि अन्नाणाणी भयणांए) कितनेक इनमें दो अज्ञानवाले होते हैं, कितनेक तीन अज्ञानवाले होते हैं. इस तरह से ये भजनासे तीन अज्ञानवाले होते हैं। (आमिणियोहियणाणलद्धिया णं भंते ! जीवा कि गाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! आभिनिबोधिक ज्ञानलब्धिवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम! (नाणी नो अन्नाणी) आभिनिबोधिक ज्ञानलब्धिवाले जीव ज्ञानी होते हैं, अज्ञानी नहीं होते हैं । (अत्थेगइया दुन्नाणी, चत्तारि नाणाई भयणाए) इनमें कितनेक जीव दो ज्ञानवाले होते हैं। चार ज्ञानवाले इनमें भजना से होते हैं । अर्थात् कितनेक तीन ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक चार ज्ञानवाले होते हैं । (तस्स अलद्धिया णं भंते जीवा कि नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! आभिनिबोधिकज्ञानकी लब्धि से रहित जीव क्या ज्ञानी डाय छे. 'तस्स अलद्धीयाणं जोवा कि नाणी अन्नाणी' हे म.-1 ! जान सdिe २हीना शु ज्ञानी हाय छ ? जानी ? ' नो नाणी अन्नाणी' गौतम ! जान सहित ज्ञानी नहीं पर मसानी हय छ. 'अत्थेगइया दु अनाणी, तित्री अन्नाणाणी भयणाए' मा ८१४ मे भज्ञानव मन मात्र जाना होय छे. मा शत नमनाथी अजाना हाय छे. 'अभिणिवोहियनाणलद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' मत ! मिनिमपि शान ! शुमानी खाय छे , मान ? 'गोयमा ' 3 गौतम ! ' नाणी नो अन्नाणी' ते शानlv डाय छ, अज्ञानी साता नयी. ' अत्थेगइया दुनाणी चत्तारिनाणाई भयणाए' मा ४४ ७३ मे शानवाया 34 छ भने ४ाने यार ज्ञानना मन डाय छे. तi zas ना जानवा मने Yean या ज्ञानवा डाय छे. 'तस्स अ. लद्धियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' म.-1! लिनिमाचर जान
श्री. भगवती सूत्र :