Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीमत्रे तद्यथा-निम्ब-आम्र-जम्बू-एवं यथा प्रज्ञपनायां यावत्-फलानि बहुबीजकानि, तदेतानि बहुबीजकानि तदेते असंख्येयजीविकाः, तत् किंते अनन्तजीविकाः? अनन्तजीविकाः अनेकविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- आलूकम्, मूलकम, श्रृङ्ग वेरम्, एवं यथासप्तमशतके यावत् सिंहकर्णी सिउण्डी, मुमुण्ढी, ये चाप्यन्ये तथा प्रकाराः, तदेते अनन्तजीविकाः । सू. १ ॥ वृक्ष कितने प्रकारके होते हैं ? (एगट्टिया अणेगविहा पण्णत्ता) हे गौतम! एक बीजवाले वृक्ष अनेक प्रकारके होते हैं (तंजहा) जैसे- (निबं-ब जम्बु एवं जहा पनवणापए जाव फला वहुबीयगा से तं बहुबीयगा) नीम, आम्र, जामुन इत्यादि प्रजापना सूत्रके प्रज्ञापना पदमें कहे गये अनुसार बहुबीजवाले फल तक जानना चाहिये । इस तरह ये बहुबीजवाले वृक्ष हैं (से तं असंखेजजीविया) यहां तक असंख्यात जीववाले वृक्षोंका वर्णन किया (से किं तं अणंतजीविया) हे भदन्त ! अनन्त जीववाले वृक्ष कितने प्रकारके कहे गये हैं ? (अणंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता) हे भदन्त ! अनन्त जीववाले वृक्ष अनेक प्रकारके कहे गये हैं । (तं जहा) जैसे- (आलुए, मूलए, सिंगवेरे, एवं जहा सत्तमसए, जाव सीउण्हे, सिउंदी, मुसंढी, जे यावन्ने तहप्पगारासे तं अणंतजीविया) आलू, मूली, अदरख, इत्यादि जैसा कि सप्तम शतकमें यावत् मिउ ढी, मुसु ढी तक कहा गया है- वैसा ही यहाँ पर जानना चाहिये । इसी तरहके जो और वृक्ष हैं वे भी अनन्त — एगट्टिया अणेगविहा पण्णत्ता' गौतम ! मे भीvin a अने: ५४ारना डायजे.' त जहा' वा 'निबं. बजबु एवं जहा पण्णवणापए जावफला बहवीयगा से त्त बहुबीयगा' सिभ31, मामा, मुत्यादि प्रज्ञापना सूत्रना પ્રજ્ઞાપના પદમાં કહેવાઈ ગયા પ્રમાણે બહુબીજવાળા ફળ સુધી જાણવા. આવી રીતે આ ममी०४ा क्ष छ. 'सेत्तं असं खेजजीविया' ही सुधा मध्यात वृक्षार्नु वन : ‘से कि त अणंतजीविया' महन्त ! मनात on पक्षना 32 ५४१२ छ ? · अणंतजीविया अणेगविहा पण्णता, 3 गौतम ! मन्नत वृक्ष मने ४२ना छ. 'तं जहा'ने २मा प्रभारी छ. 'आलए, मूलए, सिंगवेरे, एवं जहा - सत्तमसए, जाव सीउण्हे, सिउंढी मुसंढी, जे यावन्ने तहप्पगारा से तं अणंतजीविया' भासू, भृणा, भाई ઇત્યાદિ જેવાકે સાતમા શતકમાં-યાત્ સિઉંઢી, મુસુંઢી સુધી કહેવાઈ ગયું છે – તે
श्री. भगवती सूत्र :