Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ममेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. ५ मू० १ पारिग्रहादिक्रियानिरूपणम् ५९१ गौतमः पृच्छति-से केणं खाइणं अटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-सयं भंड अणुगवेसइ णो परायगं भंडं अणुगवेसई' हे भदन्त ! तत् अथ केन कारणेन उच्यते-यत् स्वकीयं भाण्डम् अनुगवेषयति, नो परकीयं भाण्डम् अनुगवेषयती. ति ? 'खइ' इति 'ण' इति उभौ वाक्यालंकारे भगवानाह-'गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ-णो मे हिरण्णे, णो मे सुवण्णे, णो मे कंसे, णो मे दूसे ' हे गौतम ! तस्य खलु श्रमणोपासकस्य कृतसामायिकस्य एवं वक्ष्यमाणप्रकारको अपरिग्रहता है। परिग्रह का लक्षण मूर्छा परिग्रहः' ऐसा माना गया है। मूर्छाभाव से रहित धनधान्यादि पदार्थ मूअिभाववान् व्यक्ति के लिये अपरिग्रह रूप ही माने गये हैं। अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि यदि ऐसी ही बात है तो ‘से केणं खाइणं अट्ठणं भंते ! एवं बुच्चइ सयं भंडं अणुगवेसइ, णो परायगं भंड अणुगवेसह' हे भदन्त ! आप एसा क्यों कहते हैं कि वह अपने भाण्डकी गवेषणा करता है परके भाण्डकी गवेषणा नही करता है ? जब उस व्यक्ति के भाण्डोंके विषयमें ममता की भावना नहीं रही. तब वे भाण्ड उसके तो कहलावेंगे नहीं-फिर वह अपने भाण्डोंकी इस प्रकार स्वत्वकी भावनासे युक्त होकर क्यों गवेषणा करता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम । 'तस्स णं एवं भवइ, णो मे हिरण्णे, णो मे सुवण्णे, णो मे कंसे, णो मे दूसे' यह वात बिलकुल ठीक है कि-सामायिक धारण weisat-Augu . ' मूर्छाः परिग्रहः' l Faia Al२परियडर्नु લક્ષણ દર્શાવ્યું છે. મૂરભાવથી રહિતને ધન ધાન્યાદિ પદાથે અપરિગ્રહરૂપ જ માનવામાં भाव्या छे.
वे गौतभ३वामी से प्रश्न पूछे छे । से केण खाइणं अटेणं भंते ! एवं वुच्चर, सयं भंड अणुगवेसइ, णो परायगं भंड' अणुगवेसई' मन्त! તે આપ શા કારણે એવું કહે છે કે તે શ્રાવક પોતાનાં જ ભાંડેની શોધ કરે છે, અન્યનાં ભાંડેની શોધ કરતો નથી? જે તે વ્યકિતને તે ભાંડો પ્રત્યે મમત્વ જ રહ્યું ન હાય, તે તે ભાડે તેના કહી શકાય જ નહી– તે પછી એવું કેવી રીતે કહી શકાય કે તે પિતાનાં ભાંડેની શોધ કરે છે? તે ભાંડેને પિતાના કહેવા એટલે તેમાં મમત્વભાવ રાખો એમ જ માની શકાય ?
त्तर- 'गोयमा' गौतम ! ' तस्स णं एवं भवइ, णो मे हिरण्णे, णो मे सुवण्णे, णो मे कंसे, णो मे इसे 'मे पात तदन साया छ ? सामायि
श्री भगवती सूत्र :