Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 754
________________ ७४२ भगवतीस्त्रे शरीराण्याश्रित्य कतिक्रिया भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंच किरिया वि, अकिरिया वि, हे गौतम ! जीवाः यदा परकीयौदारिकशरीराण्याश्रित्य कायं व्यापारयन्ति तदा त्रि क्रिया अपि, चतुष्क्रिया अपि, पञ्चक्रिया अपि, अक्रिया अपि भवन्ति, गौतमः पृच्छति'नेरइया णं भंते ! ओरालियमरीरेहितो कइकिरिया ?' हे भदन्त ! नरयिकाः खल औदारिकशरीरेभ्यः परकीयौदारिकशरीराण्याश्रित्य कातिक्रिया भवन्ति ? भगवानाह-'गोयमा ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि पंचकिरिया कि, एवं जाव वेमाणिया, नवरं मणुम्सा जहा जीवा' हे गौतम ! नैरयिका यदा परकीयौ रेहितो कइकिरिया' हे भदन्त ! जीव परकीय औदारिक शरीरों को आश्रित करके कितने प्रकार की क्रियाओवाले होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि अकरयावि' जीव जब परकीय औदारिक शरीरो को आश्रित करके काय का व्यापार करते हैं तब वे तीन क्रियाओंवाले भी होते हैं, चार क्रियाओवाले भी होते हैं, और पांच क्रियाओंवाले भी होते हैं । तथा क्रियारहित भी होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रश्न से ऐसा पूछते हैं-नेरइयाणं भंते ! ओरालिय सरीरेहितो कइकिरिया' हे भदन्त ! नारक परकीय औदारिक शरीरों को आश्रित करके कितनी क्रियाओंवाले होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'तिकिरिया वि चउकिरिया वि, पंचकिरिया वि' एवं जाव वेमाणिया-नवरं मणुस्सा जहा जीवा' नैरयिक जब परकीय गौतम स्वामीना प्रभ- 'जीवाणं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कइ किरिया?? હે ભદન્ત! છો પરકીય દારિક શરારને આશ્રિત કરીને કેટલા પ્રકારની શિક્ષાવાળા होय छ? महावीर प्रभुना उत्तर- 'गोयमा ! तिरिकिरिया वि, चउकिरिया वि. पंचकिरिया वि, अकिरिया वि' गौतम! » न्यारे ५२५ महरि शरीरात આશ્રિત કરીને કાયવ્યાપાર કરે છે, ત્યારે તેઓ ત્રણ ક્રિયાઓવાળા પણ હોય છે, ચાર ક્રિયાઓવાળા પણ હોય છે, પાંચ ક્રિયાઓવાલા પણ હેય છે અને ક્રિયા રહિત પણ होय. गौतम स्वाभाना प्रश्न- 'नेरयाणं मंते ! ओरालियसरीरेहितो कर किरिया ? ' 3 Herd! नार ५२४ीय मौरि शरीशने माश्रित शn real પ્રકારની ક્રિયાઓવાળા હોય છે? महावीर ने उत्तर- ‘गोषमा ! तिकिरिया वि चउकिरिया वि. पचकिरिया वि, एवं जाव वेमाणिया-नवरं मणुस्सा जहा जीवा'गौतम श्री. भगवती सूत्र :

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