Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 667
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.५ सू.३ आजीविकसिदांतनिरूपणम् ६५५ दवाग्निदापनता, १४ सरोहृदतडागपरिशोषणता, १५ असतीपोषणता एतेषामर्थः उपासकदशांगसूत्रस्य अगारधर्मसंजीविन्यां टीकायां विलोकनीयः, 'इच्चेते समणोवासगा मुक्का मुक्काभिजातीया भविया भवित्ता, कालमासे काल किच्चा अन्नयरेसु देवलोएस देवत्ताए उववत्तारो भवंति' इत्येते एवंप्रकाराः उपयुक्त रूपाः निग्रन्थसत्काः श्रमणोपासकाः शुक्ला:-अभिन्नत्ताः अमत्सरिणः कृतज्ञाः सदाम्भिणो हितानुबन्धकाश्च, शुक्लाभिजात्याः शुक्लप्रधानाः सात्त्विकस्वभावाः भनिका भव्याः भूत्वा कालमासे कालं कृत्वा अन्यतरेषु एकतमेषु देवलोकेषु देवतया देवत्वेन उपपत्तारो भवन्ति; देवत्वेनोत्पद्यन्ते इति भावः ॥सू० ३॥ देवलोकवक्तव्यता मूलम्-काविहाणं भंते ! देवलोगा पण्णत्ता ? गोयमा ! चउबिहा देवलोगा पण्णत्ता; तंजहा-भवणवासि-वाणमंतरजोइस-वेमाणिया; सेवं भंते सेवं भंते ॥ सू० ४ ॥ दावाग्नि दापनता १३, सरोहृदतडागपरिशोषणता १४, असतिपोषणता १५। इन सबका अर्थ उपासकदशाङ्गसूत्रकी मेरी की हुई अगारधर्मसंजीवनी टीका में लिखा गया है सो वहां से जानलेना चाहिये । इच्चेते समणोवारुगा सुक्का सुक्काभिजातीया भविया भवित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति' इस प्रकारसे ये निम्रन्थ संबंधी श्रमणोपासक अभिन्नवृत्तअमत्सरी, कृतज्ञ, सदाचारवाले और हितानुबंधक होते हैं, शुक्लप्रधान सात्त्विक स्वभाववाले होते हैं-अतः ये भव्य होकर काल करके किसी एक देवलोक में देवरूपसे उत्पन्न होते हैं ॥ सू० ३ ॥ तलाय परिसोसणया' (१४) सरीव२, इ- माने तणावना ५० यावानु , 'असई पोसणया' (१५) असती पोषाता (ढार, सुशाम २माहिने छ। रीने વેચવાને ધો). આ બધાં પદનો અર્થ ઉપાસક દશાંગસૂત્રની મારા ઠરા લખવામાં આવેલી અગારધર્મ સંજીવની ટીકામાં સવિસ્તર આપેલ છે – તે જિજ્ઞાસુઓએ ત્યાંથી मथ वांया बेवा. 'इच्चे ते समणोवासगा मुक्का मुकाभिजातीया भविया भवित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति' मा प्रमाणे ते श्रम नियन पास। ममिन्नवृत्त समत्सरी (निशभिमानी), તજ્ઞ, સદાચારી અને પિતાનુબંધક હોય છે. તેઓ શુકલપ્રધાન (પવિત્રતા યુકત) સવિક સ્વભાવવાળા હોય છે. તેથી તે ભવ્ય છ કાળનો અવસર આવે કાળ કરીને કોઈ એક દેવલોકમાં દેવીપે ઉત્પન્ન થાય છે. | સૂ ૩ श्री. भगवती सूत्र :

Loading...

Page Navigation
1 ... 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823