Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 745
________________ म. टीका श८ उ.६ मु०५ क्रियास्वरूपनिरूपणम् तापयति तदा चतुष्क्रियः, आधक्रियात्रयस्य तत्रावश्यंभावात, यदात्वति पातयति तदा पञ्चक्रियः, आधक्रियाचतुष्कस्य तत्रावश्यंभावात, तदुक्तम्'जस्स पारियावणियाकिरिया कज्जइ तस्स काइया नियमा कज्जइ' इत्यादि, यस्य पारितापनिकी क्रिया क्रियते, तस्य कायिकी नियमात क्रियते, इति, तदभिप्रायेणाह-'सिय चउकिरिए सिय पंचकिरिए'त्ति, तथा सिय अकिरिए' स्यात् कदाचित् वीतरागावस्थायाम् अक्रियो जीवो भवति इत्यर्थः, वीतरागावस्थायां हि वीतरागत्वादेव न सन्ति अधिकृतक्रिया इत्याशयः, गौतमः पृच्छति नेरइए गं भंते ! ओरालियसरीराओ कइ किरिए ? हे भदन्त ! नैरयिकः-खलु औदारिकशरीरात् परकीयौदारिकशरीरमाश्रित्य कतिक्रियः कियत्मकारकक्रियवान् वाला होता है ऐसा कहा है-जब यह अवीतराग जीव अन्य जीवोंको परितापित करता है-तब वह चार क्रियाओंवाला होता है क्योंकि ऐसी अवस्था में आदिकी तीन क्रियाएँ उस में अवश्य होती है। तथा जब यह जीव अन्य जीवोंको मारता है तब वह पांच क्रियाओंवाला होता है-क्यों कि इस स्थिति से उसमें आदिकी चार क्रियाओंका अवश्यही सद्भाव रहता है सोही कहा है- 'जस्स परियावणिया किरिया कज्जइ, तस्स काइया नियमा कज्जई' इत्यादि-इसी अभिप्रायको लेकर 'मिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, त्ति' ऐसा कहा गया है। तथा 'सिय अकिरिए' ऐसा जो कहा है वह वीतराग अवस्थाको लेकर कहा है क्योंकि वीतराग अवस्था में जीव इन क्रियाओंवाला नहीं होता है। अब गौतम स्वामी प्रभुसे पूछते है- (नेरहएणं भंते ! ओरालियसरीराओ कइ किरिए) हे भदन्त ! नारक परकीय औदारिक शरीरको आश्रित करके कितने प्रकारकी क्रियाओंवाला કહી શકાય છે. જ્યારે તે અવીતરાગ જીવ અન્ય જીવોને પરિતાપિત કરે છે, ત્યારે તે ચાર ક્રિયાઓવાળા કહેવાય છે. તથા જ્યારે તે જીવ અન્ય જીવોને મારતા હોય છે, ત્યારે તે પાંચ ક્રિયાઓવાળે હોંય છે, કારણકે એવી પરિસ્થિતિમાં તે છવમાં પહેલી ચાર यामान। पान अवश्य समाव २९ छे. तेथी । झुछ है 'जस्स पारियावणिया किरिया कज्जइ, तस्स काइया नियमा कज्जइ' याहि मे ॥२० सूत्रहारे । प्रमाणे बुछ- 'सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए त्ति' तथा 'सिय अकिरिए' કયારેક તે ક્રિયા રહિત હોય છે,” આવું જે કહેવામાં આવ્યું છે તે વીતરાગ અવસ્થાને અનુલક્ષીને કહ્યું છે, કારણકે વિતરાગ અવસ્થામાં જીવ આ ક્રિયાઓવાળ હોતે નથી. 6 गौतम खामी ना२४ ७ विषे प्रल पूछे-'नेरइएणं भंते ! ओरालियसरीराभो कइ किरिए 3rd! HERB lय मोहन शरने मागित Na.seी श्री. भगवती सूत्र :

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