Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 696
________________ ६८४ raadiya स्यात्, 'एवं जाव दहिं पडिग्गहेडिं' एवं रीत्या यावत् - त्रिचतुर पञ्चषट् सप्ताष्टनवभिः दशभि प्रतिग्रहैः पात्रैरुपनिमन्त्रयेत इत्यादि पूर्वोक्तरीत्या स्वयमहनीयम् एवं जहा पडिग्गहबत्तव्वया भणिया, एवं गोच्छगरयहरण चोलपट्टग कंबल लट्ठी संथारगवत्तव्या य भाणियव्वा' एवं रीत्या गुच्छकरजोहरण - चोल-पट्टक- कम्बल - राष्टि-संस्तारक वक्तव्यता च भणितव्या, 'जात्र दहिं संथारएहिं उवनिमंतेज्जा जाव परिद्वावेव्वा सिया' यावत निर्ग्रन्थं चखलु गृहपतिकुलं संस्तारकपातप्रतिज्ञया अनुप्रविष्टं कश्चिद्गृहपतिः द्वित्रि चतुः पञ्च षट् सप्ताष्टम नवभिः दशभिव संस्तारकैः उपनिमन्त्रयेत् यावत्दसहिं पडिग्गहे हिं०' इसी तरह से यदि कोई गृहस्थ उस निर्ग्रन्थ के लिये तीन, चार, पाँच, छह, सात, आठ, नौ और दश पात्रों द्वारा उपनिमन्त्रित करता है तो इस विषय में भी समस्त कथन पहिले की तरह से हो अपनेआप समझ लेना चाहिये । 'एवं जहा पडिमहत्तन्वया भणिया, एवं गोच्छ्ग, रयहरण, चोलपट्टग, कंबल, लट्ठी, संधारगवतव्वया य भाणियव्वा' जिस तरह से पात्र ग्रहण करने के विषय में यह कथन किया गया है उसी तरह से गुच्छा, रजोहरण, चोलपट्टक, कम्बल यष्टि और संस्तारक के विषय की वक्तव्यता भी जाननी चाहिये. 'जाव दसहि संथारएहि उवनिम तेज्जा जाय पingiacat सिया' जैसे - संस्तारकपातप्रतिज्ञा से सम्तारक प्राप्त करने का इच्छा से गृहपति के घर पर गये हुए निर्ग्रन्थ को यदि कोई गृहस्थ दो, तीन, चार, पांच, छह, सात, आठ, नौ और दश ભૂમિની પ્રતલેખના અને પ્રમાના કરીને પરડી દેવું જોઇએ. पडिग्गहेहि . ' / प्रभारी ले अई गृहस्थ ते निर्यथने સાત, આઠ, નવ અને દસ પાત્રા આપીને આ પ્રમાણે કહે છે કે- ‘હું આયુષ્મન 1 આમાંથી એક પાત્ર આપના ઉપયેગમાં લેજો, ખાકીનાં બે, ગણુ આફ્રિ પાત્રા અમુક શ્રમણને આપી દેશેા ′ ત્યાદિ સમસ્ત કથન આગળ મુજબ જ સમજવું. एवं जहा पsिहवत्तया भणिया, एवं गोच्छा, रयहरण, चोलपट्टग, कंबल, लट्ठी, संचार तनयाय भाणियन्त्रा' पात्र श्रड ४२वा विषेने अथन अश्वामां आव्यु छे, એવુંજ કથન ગાò, રજોહરણ, ચાલપટ્ટક, કબલ, દંડ મને સંસ્તારક વિષે પણ समन्j. ta दस संस्था एहि उबनिमंतेज्जा जाव परिद्वावेयव्वा सिया' સસ્તારકપાત પ્રતિજ્ઞાથી-સંસ્તારક પ્રાપ્ત કરવાની મુચ્છાથી કઈ ગૃહસ્થને ઘેર ગયેલા निर्भयते ते गृहस्थ अनुउभे मे, ऋणु, यार, पांय छ, सात, आई, नव भने ह 6 एवं जाव दसहि त्र, यार, पांय, छ, 6 6 ܕ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬

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