Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 740
________________ ७२८ भगवतीमूने कार्मणमपि, भणितव्यम्, एकैकस्मिन् चत्वारो दण्डका भणितव्याः, यावद वैमानिकाः खलु भदन्त ! कार्मणशरीरेभ्यः कतिक्रियाः ? गौतम ! त्रिक्रिया अपि, चतुष्क्रिया अपि, तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति ॥ सू० ५ सरोरेण वि चत्तारि-दंडगा भाणियव्वा-नवरं पंचमकिरिया न भन्नइ, सेसं तंचेव-एवं जहा वेउव्वियं तहा आहारगंपि, तेयगंपि, कम्मगंपि, भाणियन्वं-एक्केके चत्तारि दंडगा भाणियव्वा)इस तरहसे जैसे औदारिक शरीरके चार दंडक कहे गये हैं उसी तरहसे वैक्रिय शरीरके भी चार दण्डक कहना चाहिये । परन्तु वैक्रिय शरीरके दण्डक में पांचवी क्रिया नहीं कहनी चाहिये। क्यों कि वैक्रिय शरीरको आश्रय करके पांचवी क्रिया नहीं होती है। बाकोका सब कथन पहिलेकी तरहसेही जानना चाहिये। जिस तरहसे वैक्रिय शरीरके विषय में कहा गया है उसी तरहसे आहारक तैजस और कार्मण शरीरके विषय में भो कथन कर लेना चाहिये । अर्थात् एक एक शरीरके आश्रयसे चार २ दण्डक होते हैं-ऐसा जानना चाहिये। (जाव वेमाणिया णं भंते ! कम्मगसरीरेहितो कइकिरिया ) हे भदन्त ! यावत् वैमानिक कार्मण-शरीरोंके आश्रयसे कितनी क्रियाओंवाले होते हैं ? ( गोयमा) हे गौतम ! (तिकिरिया वि, चउकिरिया वि, सेवं भंते ! सेवं भंते ! (एवं जहा ओरालियसरीराणं चत्तारि दंडगा भणिया, तहा वेउब्धियसरीरेण वि चत्तारि दंडगा भाणियचा - नवरं पंचमकिरिया न भन्नइ, सेसं तं चेव -एवं जहा वेउब्वियं तहा आहारगं पि, तेयगं पि, कम्मगं पि, भाणियां-एकेके चत्तारि दंडगा भाणियव्वा ) मो२४ शरीरना જેવા ચાર દંડક કહેવામાં આવ્યા છે, એ જ પ્રકારના ચાર દંડક વૈકિયશરીરના પણ કહેવા જોઈએ. પરંતુ વિશેષતા એટલી જ છે કે વૈકિયશરીરના દંડકમાં પાંચમી ક્રિયા કહેવી જોઈએ નહીં; કારણકે બૈક્રિયશરીરને આશ્રય કરીને પાંચમી ક્રિયા થતી નથી. બાકીનું સમસ્ત કથન પહેલાની જેમ જ સમજવું. વૈક્રિય શરીરના વિષયમાં જેવું કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન આહારક, તેજસ અને કાશ્મણ શરીરના વિષે પણ કરવું જોઈએ. એટલે કે દરેક શરીરના આશ્રયથી ચા–ચાર દંડક થાય છે, એમ સમજવું. जाव वेमाणिया णं भंते ! कम्मगसरीरेहिंतो कइकिरिया ?) सौथा छea વૈમાનિકેન આલાપક આ પ્રમાણે બનશે–હે ભદન્ત ! વૈમાનિકે કાર્મણારીના આશ્રમથી सी मावा डीय छ ! (गोयमा ) 3 गौतम ! (तिकिरिया वि, चउकिरिया श्री. भगवती सूत्र :

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