Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 741
________________ ममेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.६ म.५ क्रियास्वरूपनिरूपणम् ७२९ टीका-पूर्व तेजसां ज्वलनक्रिया परशरीराश्रया प्रतिपादिता तत्प्रस्तावात् औदारिकादिपरशरीरमाश्रित्य जीवसमुच्चयस्य नैरयिकादेश्च क्रियाः प्ररूपयितुमाह -'जीवे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जीवः खलु औदारिकशरीरात्-परकीयौदारिकशरीरमाश्रित्य कतिक्रियो भवति ? कियत्मकारकक्रियावान् भवति इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, सिय अकिरिए' हे गौतम ! त्ति ) वैमानिक देव कार्मण शरीरोंके आश्रजसे तीन क्रियाआंवाले भी होते हैं, चार क्रियाओंवाले भी होते हैं। हे भदन्त ! जैसा आपने कहा है-वह सब यह विषय सर्वथा सत्य है. हे भदन्त ! आपके द्वारा कहा गया यह सब विषय सर्वथा सत्य है। इस प्रकार कह कर गौतम यावत् अपने स्थान पर विराजमान हो गये। टीकार्थ-पहिले अग्निकायों की जलनक्रिया पर शरीर के आश्रय से कही गई है । सो इसी विषय को सूत्रकार औदारिक आदि पर शरिरको आश्रित करके सामान्य जीव के और नैरयिक आदि विशेष जीवकी क्रियाओं का कथन करते हैं-इसमें गौतमने प्रभुसे ऐसा पूछा है-'जीवेणं भंते ! ओरालियसरीराओ कह किरिए' हे भदन्त ! एक जीव परकीय औदारिक शरीर को आश्रित करके कितनी क्रियाओं वाला होता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंच किरिए, सिय अकिरिए' वि. सेवं मंते ! सेवं भंते ! त्ति) भानि वो भएशरीराना आश्रयथा ऋण યિાવાળા પણ હોય છે અને ચાર ક્રિયાવાળા પણ હોય છે. ગૌતમસ્વામી મહાવીર પ્રભુને કહે છે કે હે ભદન્ત ! આ વિષયનું આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું તે સર્વથા સત્ય છે. હે ભદન્ત ! આપે જે કહ્યું તે યથાર્થ જ છે. આ પ્રમાણે કહીને વંદણા નમસ્કાર કરીને ગૌતમ સ્વામી પિતાને સ્થાને બેસી ગયા. ટીકા :- પર-શરીરને આશ્રયે અગ્નિકાની જવલનક્રિયાનું આગલા સૂત્રમાં પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું હવે સૂત્રકાર ઔદારિક આદિ પરકીય શરીરનો આશ્રય કરીને સામાન્ય જીવ અને નારક આદિ વિશેષ છની ક્રિયાઓનું નિરૂપણ કરે છે- આ વિષયને अनुमान गौतम स्वामी महावीर प्रभुने मेवो प्रश्न पूछे 'जीवेणं भंते ! ओरालियसरीराओ कइ किरिए ?' भगवन्त! मे४ ७५ ५२४ीय मोहारिक શરીરને આશ્રિત કરીને કેટલી ક્રિયાઓવાળો હોય છે? મહાવીર પ્રભુનો ઉત્તર - 'गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए, सिय अकिरिए, श्री. भगवती सूत्र :

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