Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 727
________________ प्रमेयचन्द्रिका टो श.८ उ.६ म.३ निग्रंथाराधकतानिरूपणम् ७१५ द्रोण्यां मञ्जिष्ठारागभाण्डे प्रक्षिपेत् ‘से गुणं गोयमा ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पक्वित्ते,रज्जमाणे रत्तेत्ति वत्तव्वं सिया! तत् वस्त्रम् नूनम् उत्क्षिप्यमाणम् उत्क्षिप्तम् प्रक्षिप्यमाणं प्रक्षिप्तम् , रज्यमानं रक्तमिति व व्यं स्यात् किम् ? गौतम आह-'हंता, भगवं ! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, जाव रत्तेत्ति दत्तव्वं सिया' हे भगवन् ! हन्त सत्यम् तद्वस्त्रं मजिष्ठाद्रोण्याम् उत्क्षिप्यमाणम् उत्क्षिप्तम्, यावत्-प्रक्षिप्यमा प्रक्षिप्तम्, रज्यमानं रक्तमिति नूनं वक्तव्यं स्यात्. पयोग होता है वह वर्तमान काल और भूतकाल में अभेद मानकर ही होता है। इसी बात को ध्यान में रखकर प्रभु गौतम से 'उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते रज्जमाणेरज्जे त्ति वत्तव्बं सिया' ऐसा कह रहेहैं- कहो गौतम ! जब यह वस्त्र मंजिष्ठा रंगके पात्र में उलट पुलट किया जाता है- उस समय उसमें 'उत्क्षिप्तम् ' ऐसा भूतकाल संबंधी प्रयोग होता है न ? तथा जब उस मंजिष्ठा रंगके पात्र में डाला जाता - है तब उसमें वह डाल दिया गया है ऐसा भी भूतकालका प्रयोग होता है न ? तथा-जब वह रंगनेकी अवस्था में होताहै तब उसमें वह रंगा जा चुका है। ऐसा भी भूतकालका प्रयोग होता है न ? इस पर गौतम कहते हैं- 'हंता भगवं ! उक्खिप्पमाणे उकिम्वत्ते, जाय रत्तेत्ति वत्तव्वं सिया' हां भदन्त ! ऐसा सब प्रयोग होताहै- अर्थात मंजिष्ठा रंगकी द्रोणी (कुडी) में उत्क्षिप्यमाण वस्त्र में उक्षिप्त और रज्यमान રહેલા વસ્ત્રને માટે “રંગાઈ ગયું છે' એવા જે ભૂતકાલિક પ્રયોગ થાય છે તે વર્તમાન અને ભૂતકાળમાં અભેદ માનીને જ થાય છે. એજ વાતને ધ્યાનમાં રાખીને પ્રભુ ગૌતમ स्वाभान मा प्रभारे - 'उविखप्पमाणे उक्खित्ते, पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते, रजमाणे रज्जे ति वत्तव्वं सिया'. हे गौतम! भनिन। २मा नाम मावी રહેલા તે વસ્ત્રને માટે “રંગમાં નાખી દેવામાં આવ્યું', એ ભૂતકાલિક પ્રોગ થાય છે કે નહીં ? તે રંગમાં ઝબોળાઈ રહેલા વસ્ત્રને માટે ‘બળાઈ ગયું” એવો પ્રવેશ થાય છે કે નહીં ? તે રંગમાં રંગાતા વસ્ત્રને માટે “રંગાઈ ગયું' એવો પ્રયોગ થાય છે કે નહીં? આ રીતે તે ત્રણ વર્તમાનકાલિક ક્રિયાઓ માટે ભૂતકાળને પ્રયોગ થાય છે नही? गौतम स्वामी रामापे छ- 'हंता, भगवं! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते, जाव रत्ते त्ति वत्तव्यं सिया' सह-त! मेवा प्रयोग य श . भेट મજિઠના રંગની કુંડીમાં ઉક્ષિપ્રમાણુ (નંખાઈ રહેલા) વસ્ત્રને માટે “ઉક્ષિપ્ત' (નાખી દેવામાં આવ્યું) એવો પ્રયોગ કરી શકાય છે અને રંગતા વસ્ત્રને માટે “રંગાઈ ગયું' એવો પ્રયોગ પણ કરી શકાય છે. श्री भगवती सूत्र:

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