Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्र. टीका श ८ उ.६ मू०२ निर्गन्थदानधर्म निरूपणम्
६८३ कुरु 'एगं थेराणं दलयाहि' एकम् अपर प्रतिग्रहं स्थविराणां स्थविरेभ्यो देहि, 'से य तं पडिग्गहेज्जा' स निर्गन्धश्च तं स्थविरप्रतिग्रहं पात्रं प्रतिगृह्णीयात् 'तहेन जाव तं नो अप्पणा परिभुजेजा, नो अन्नेसिं दावए' तथैव पूर्वोक्तवदेव यावत्-स्थविराश्च तस्य अनुगवेषयितव्याः स्युः, इत्यादि सर्व संग्राह्यम्, तांश्च स्थगिन् अनुगवेषयन् नो पश्येत् तदा तं स्थविरप्रतिग्रहं नो आत्मना स्वयमेव उपभुञ्जीत, नो वा अन्येषाम् अन्येभ्यो दद्यात् दापयेद्वा, 'सेसं तं चेत्र जाव परिढावेयवेविया' शेषं तदेव पूर्वोक्तवदेवयावत्-एकान्ते अनापाते अचित्ते बहुप्रा के स्थाण्डिले प्रतिलेख्य प्रमाज्यं परिष्ठापयितव्यः अपने काम में लेना और यह दूसरा पात्र अमुक निर्ग्रन्थ के लिये दे देना से य तं पडिग्गहेज्जा' इस तरह से वह दूसरे श्रमण को दिये जाने वाले उस दूसरे पात्र को ले लेता है । तहेव जाव तं नो अप्पणा परिभुजेज्जा णो अन्नेसिं दावए' लेकर वह अपने स्थान पर आ जाता है और आकर वह उस स्थविर की गवेषणा करता है कि जिसके लिये वह पात्र देने को कहा गया है। इस तरह उस स्थविर की गवेषणा करता हुआ वह यदि उस स्थविर को पा लेता है तो उसे वह पात्र दे देना चाहिये-नहीं मिलने पर उसे अपने उपयोग में नहीं लेना चाहिये और न किसी दूसरे साधु को देना चाहिये, या दिलवाना चाहिये । 'सेसं तं चेव जाव परिट्ठावेयवासिया' किन्तु पिण्डपात प्रकरण में कहे अनुसार उसे उस पात्र को एकान्त, अनापात, अचित्त, बहुमासुक स्थण्डिल में प्रतिलेखना
और प्रमार्जना करके प्रतिष्ठापित कर देना चाहिये । 'एवं जाव पापी हो. 'सेय तं पडिग्गहेजा' मा शते wlad भू नियने सा५१ भारतुं पात्र ५५ ते ६ya छ, 'तहेव जाव तं नो अप्पणा परिभुजेज्जा णो अन्नेसिं दावए' a पाने ने चोतने स्थान पाछे। ५२ छ भने पछी ते નિગ્રંથની શોધ કરે છે, જે તેને તે નિર્મથને ભેટો થઈ જાય, તો તે તેમને તે પાત્ર આપી દે છે. પણ જે તે સાધુ તેને મળે જ નહીં તે તે પોતે તે પારનો ઉપયોગ કરી શકતો નથી. અને તે સાધુ સિવાયના બીજા કોઈ પણ સાધુને તે પાત્ર તે माधी शत नथी. और तम ४२वामी तने भत्ताहानन दोष दाणे छ. 'सेसं तं चेव जाव परिहावेयव्वे सिया' ५ पिपात प्र४२९मा ४ा अनुसार ती a પાત્રને એકાન્ત, મનુષ્યના અવરજવર વિનાની, અચિત્ત અને બહુમાસુક ભૂમિમાંતે
श्री. भगवती सूत्र :