Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 710
________________ भगवतीमूने मिथ्यादुष्कृतदानेन भतिक्रमामि, अकृत्यस्थानस्य कुत्सनेन निन्दामि, गर्हामि गर्दै गर्हणां करोमि गुरु समक्षे, वित्रोटयामि, तदनुबन्ध छिनद्मि, · विसोहेमि, अकरणयाए अब्भुढे मि, आहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जामि' विशोधयामि, पायश्चित्ताभ्युपगमेन पापपङ्क प्रक्षालयामि, अकरणतया पुनरकरणेन अभ्युत्तिष्ठामि, अभ्युत्थितो भवामि, यथा यथायोग्यं यथोचितमित्यर्थः प्रायश्चित्तं तपाकर्म प्रतिपद्ये स्वीकरोमि ' तओ पच्छा थेराणं अंतियं अलोएस्साणि जाव तबोकम्म पडिवज्जिस्सामि' ततःपश्चात् तपःकर्म प्रायश्चित्तपतिपत्त्यनन्तरम् स्थविराणाम् अन्तिकं समीपं गत्वा आलोचयिष्यामि आलोचनां करिष्यामि, यावत्प्रतिक्रमिष्यामि, निन्दिष्यामि, गर्हिष्ये, वित्रोटयिष्यामि, विशोधयिष्यामि, आलोचना कर लू-मिथ्यादुष्कृत देकर प्रतिक्रमण कर लू, निंदा कर लू गर्दा कर लू, उसके अनुबंध को छेद दू, 'विसोहेमि, अकरणयाए अब्भुटेमि, आहारिहं पायच्छित्तं तनोकम्मं पडिवज्जामि' प्रायश्चित लेकर पापपङ्क (कीचड) को दूर कर दूं । 'अब आगे ऐसा नहीं करूंगा' इस प्रकार से मैं अपने आपको तैयार कर लू और यथायोग्य प्रायश्चित्तरूप तपकर्म को स्वीकार कर लू । 'तओ पच्छा' ऐसा विचार करने के बाद-अर्थात् तपःकर्म प्रायश्चित्त प्रतिपत्ति के अनन्तर वह निर्ग्रन्थ वहीं पर ऐसा विचार करता है कि 'थेराणं अंतियं आलोएस्सामि, जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्मामि' कि मैं फिर अब यहाँ से चलकर स्थविरों के पास जाकर उनसे आलोचना करूंगा, यावत् तपाकर्म स्वीकार करूंगा। यहां यावत् शब्द से 'निन्दिष्यामि, गर्हिष्ये, वित्रोटयिष्यामि, विशोधयिष्यामि, अकरणतया अभ्युत्थास्यामि, સાક્ષીએ આલોચના કરી લઉં, મિયાદુકૃત્ય માનીને તેનું પ્રતિક્રમણ કરી લઉં, નિંદા કરી स, महेश , ना अनुमापने छही ना. 'विसोहेमि, अकरणयाए अब्भुट्ठमि आहारिहं पायच्छित्त तवोकम्मं पडिवज्जामि' प्रायश्चित्त ने पा५५४ (५५३५॥ કાદવ) ને દૂર કરી નાખ્યું. “ભવિષ્યમાં એવું નહીં કરવાનો નિશ્ચય કરું, અને યથા યોગ્ય प्रायश्चि1३५ त५मन २ ४३. 'तओ पच्छा ' मे विया२ ४शन-2 प्रायश्चित्त३५ तपमा स्वी॥२ ४२वान वियार या पछी- 'थेराणं अंतियं आलो. एस्सामि जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि' तने मेवो विया२ थाय वे હું સ્થવિરાની પાસે જઈને તેમની સમક્ષ આ અકૃત્યસ્થાન પ્રતિસેવનને માટે અલાચના આદિ કરીશ અને પ્રાયશ્ચિતરૂપ તપકર્મને સ્વીકાર કરીશ. અહીં “આદિ પદ દ્વારા श्री. भगवती सूत्र:

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