Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
द्वारेण ततो निवर्तमानः किं त्रिविधं त्रिकारकं करणकारणानुमोदनलक्षणं प्राणातिपातयोगम् त्रिविधेन मनोवचः कायलक्षणेन त्रिकारकेण करणभूतेन प्रतिक्रामति निन्दनेन ततो विरमति ? किंवा 'तिविहं दुविहेणं पडिकमइ ११२ त्रिविधं कृतकारितानुमोदितलक्षणम् पूर्वोक्त प्राणातिपातं द्विविधेन करणभूतेन मनःप्रभृतित्रयाणामेकतरवर्जिततद्द्वयेन प्रतिक्रामति, ततो निवर्तते ? अथवा 'तिविहं एगविणं पडिक्कम १३ त्रिविधम् उपर्युक्त त्रिमकारकं प्राणातिपातम् एकविधेन मनःप्रभृतीनामेकतमेन करणलक्षणेन प्रतिक्रामति गर्हणाद्वारा ततो विरमति 'दुविहं तिविहेणं पडिकमइ १४ द्विविधं कृत-कारितादिलक्षणं प्राणातिपातं त्रिविधेन उपर्युक्तेन मनःप्रभृतिकरणलक्षणेन प्रतिक्रामति ? 'दुवि दुविणं पडिक्कम ११५ द्विविधं पूर्वोक्त कृतादिप्राणातिपातं द्विविधेन अतीतकाल में हुए प्राणातिपात का प्रतिक्रमण करता है सो क्या वह कृत, कारित और अनुमोदना से हुए प्राणातिपात का मन, वचन, और काय द्वारा प्रतिक्रमण करता है क्या ? या 'तिविहं दुविणं पडिकम २' कृत, कारित एवं अनुमोदना से जन्य प्राणातिपात का मन, वचन और काय इन तीनों में से किसी एक को छोड़कर दो के द्वारा प्रतिक्रमण करता है क्या ? या 'तिविहं एगविहेणं' ३ कृत, कारित, एवं अनुमोदना से हुए प्राणातिपात का मन, वचन और काय इन तीनों में से किसी एक से प्रतिक्रमण करता है क्या ? अर्थात् निन्दा द्वारा उस प्राणातिपात से दूर होता है ? 'दुविह तिविहेणं पडिकम १४ या कृत, कारित एवं अनुमोदना इन तीन में से किसी दो के द्वारा हुए प्राणातिपात का वह मन, वचन और काय इन तीनों द्वारा प्रतिक्रमण करता है ? 'दुविहं दुविहेणं पडिक्कम ५, या द्विविध का पूर्वोक्त कृत, કરતા શ્રાવક છું કૃત, કારિત અને અનુમેાદના રૂપ ત્રણે કારણેા વડે થયેલાં પ્રાણાતિપાતનું भन, वयन याने हाय, मे भो द्वारा प्रतिभा रे ? ' तिविहं दुविहेणं पडिकमइ २ ? ' त, अस्ति भने अनुमोहना द्वारा उशयेक्षां प्रशातियातनु भन, वयन शाने अय, ये त्रष्णुभांथी गमे ते मे द्वारा प्रतिभा उरे छे ? 'तिविहं एगविहेणं' ३१' द्रुत, भरित भने अनुभोना द्वारा रासां आलातियातनुं भन, वयन भने કાય, એ ત્રણેમાંથી ગમે તે એક દ્વારા પ્રતિક્રમણ કરે છે? એટલે કે નિંદા દ્વારા તે आयातिपातथी भुक्त थाय छे ? है ' दुत्रिहं तिविहेणं पडिक्कम ४१ हृत अश्ति અને અનુમેના એ ત્રણમાંથી કાઇ એ કારણા દ્વારા કરાયેલ પ્રાણાતિપાતનું મન, વચન
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬