Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. ५ म. १ परिग्रहादिक्रियानिरूपणम् ५८५ एवं भवति-नो मे माता, नो मे पिता, नो मे भ्राता, नो मे भगिनी, नो मे भार्या, नो मे पुत्रः, नो मे दुहिता, नो मे स्नुषा, प्रेमबन्धनं तस्य अव्युच्छिन्नं भवति, तत् तेनार्थेन गौतम! यावत् नो अजायां चरति ॥५० १॥
टीका- चतुर्थोद्देशके क्रिया प्ररूपिता, तदधिकारात् परिग्रहादिक्रिया ना अजायं चरइ) हे भदन्त ! यदि वह स्त्री उसकी नहीं रहती हैअन्य स्त्री होजाती है- तो फिर एसा आप किस कारणसे कहते हैं कि वह पुरुषकी स्त्रीके साथ अशिष्ट व्यवहार करता है। (गोयमा) हे गौतम ! (तस्सणं एवं भवइ-णो मे माया. णो मे पिया णो मे माया णो मे भगिणी, णो मे भज्जा, णो मे पुत्ता, णो मेधूया, णो मे सुण्हा, पेजबंधणे पुणसे अवोच्छिन्ने भवइ, से तेणटेणं गोयमा ? जाव नो अजायं चरइ) सामायिक करने वाले श्रावकके मनमें उस समय ऐसा परिणाम होता है कि माता मेरी नहीं हैं, पिता मेरे नहीं हैं ! भाई मेरे नहीं हैं, बहिन मेरी नहीं है। भार्या स्त्री मेरी नहीं हैं। पुत्र मेरे नहीं हैं। लडकी मेरी नहीं है। पुत्रवधू मेरी नहीं है। परन्तु इन सब से उसका प्रेमबंधन छटता नहीं है। इस कारण हे गौतम ! मैने ऐसा कहा है कि वह पुरुष उनकी स्त्री से अशिष्ट व्यवहार करता है। अन्य स्त्री से अशिष्ट व्यवहार नहीं करता है।
टीकार्थ :- चतुर्थ उद्देशकमें क्रियाका प्ररूपण किया गया हैइसी संबंघको लेकर सूत्रकारने परिग्रहादि विषयक विचार यहां હે ભદન્ત! જે તે તેની પત્ની રહેતી નથી - અપના બની જાય છે – તે આપ શા કારણે એવું કહે છે કે તે પુરુષ તેની પત્ની સાથે અશિષ્ટ વ્યવહાર કરે છે? (गोयमा !) 3 गौतम!(तस्सणं एवं भवइ · णो मे माया, णो मे पिया णो मे भाया, णो मे भगिणी, णो मे भज्जा, गो मे पुत्ता, णो मे धृया, णो मे मुण्हा, पेजबंधणे पुणसे अयोच्छिन्ने भवइ, से तेणटेणं गोयमा ! जाव नो अजाय चरइ) सामायि४ ४२११२ श्रावना मनना परिणाम से मत व हाय ? भाता મારી નથી, પિતા મારા નથી, ભાઇએ મારા નથી, બહેનો મારી નથી, પુત્રે મારા નથી, પુત્રીઓ મારી નથી અને પુત્રવધૂ પણ મારી નથી. પરંતુ એ બધાં સાથેનું તેનું પ્રેમબંધન છૂટતું નથી. હે ગૌતમ! તે કારણે એવું કહ્યું છે કે તે પુરુષ તેની સ્ત્રી સાથે અશિષ્ટ વ્યવહાર કરે છે, અન્યની સ્ત્રી સાથે અશિષ્ટ વ્યવહાર કરતા નથી.
ટીકાથ:- ચેથા ઉદ્દેશકમાં ક્રિયાનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. એજ સંબંધને અનુલક્ષીને સૂત્રકારે આ ઉદ્દેશકમાં પરિગ્રહ આદિ વિષે વિચાર પ્રકટ કર્યો છે.
श्री भगवती सूत्र: