Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.३ सू १ वृक्षविशेषनिरूपणम् ५४७ ___टीका-पूर्व द्वितीयोदेशके आभिनिबोधिकादिकं ज्ञानं पर्यायतः प्ररूपितम्, तेन च वृक्षादयोऽर्था ज्ञायन्ते अतस्तृतीयादेशके ज्ञानविषयान् वृक्ष विशेषान् प्ररूपयितुमाह-' कह बिहाणं भंते ! रुक्खा पण्णता ? ' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कतिविधाः कियत्प्रकाराः खलु वृक्षाः प्रज्ञप्ताः ? भग बानाह-'गोयमा ! तिबिहा रुक्खा पण्णना' हे गौतम ! त्रिविधाः वृक्षाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा- संखेज्जजीविया, असंखेज जीविया, अणंतजीविया ' तद्यथा-संख्येयजीविकाः, असंख्येयजीविकाः, अनन्तजीविकाः, तत्र संख्येयाः संख्याता जीवाः सन्ति एषु ते सख्येयजीविनः त एव संख्येयजीविकाः जीववाले वृक्ष जानना चाहिये । इस तरह अनन्तजीववाले वृक्ष कहे गये हैं।
____टीकार्थ - पहले द्वितीय उद्देशक में आभिनियोधिक ज्ञान आदिका निरूपण पर्यायकी अपेक्षासे किया गया है-ज्ञानसे वृक्षादिक अर्थ-पदार्थ जाने जातेहैं-इसलिये इस तृतीय उद्देशक में ज्ञान के विषयभूत वृक्षविशेषांकी प्ररूपणा करने के लिये सूत्रकार कहते हैंइसमें गौतम स्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है-'कइ विहाणं भते ! रुक्खा पण्णत्ता' हे भदन्त ! वृक्ष कितने प्रकार के कहे गये हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहा रुक्खा पण्णत्ता' वृक्ष तिन प्रकार के कहे गये हैं ! ' तं जहा' वे इस तरहसे हैं-'संखेज्जजीविया, असं खेज्जजीविया, अणंतजीविया' संख्यात जीववाले, असंख्यात जीववाले, और अनन्तजीववाले। संख्यात जीव जिनमें होते हैं वे संख्यात जीवी हैं- संख्यात जीवीही પ્રમાણે અહીં પણ જાણવું. આ પ્રમાણે જે બીજા વૃક્ષ છે તે પણ અનન્તજીવવાળા વૃક્ષ ગણવા-જાણવા. આમ અનંતજીવવાળા વૃક્ષ કહેલાં છે.
ટીકાથ:- પહેલા બીજા ઉદ્દેશકમાં આભિનિબંધિક જ્ઞાનાદિનું નિરૂપણ પર્યાયોની અપેક્ષાથી કરવામાં આવ્યું છે. જ્ઞાનથી વૃક્ષાદિક અર્થ–પદાર્થ જાણી શકાય છે. તેટલા માટે આ ત્રીજા ઉદ્દેશકમાં જ્ઞાનના વિષયભૂત થયેલાં વૃક્ષવિશેની પ્રરૂપણ કરવા સારૂ सूत्रा२ ४ छे :-मामा गौतम २वाभीमे सुने मे पूछ्यु छ ? 'कइविहाणं भंते ! रुक्खा पण्णत्ता' त! वृक्ष टना प्रारना ४९मा छ ? तेना उत्तरमा प्रभु
'गोयमा' गौतम ! 'तिविहा रुक्खा पण्णत्ता' आडना त्र] २ छे. 'त जहा' मा प्रभारी . 'संखेज्जजीविया, असंखेज्जजीविया, अणंत जीविया' सात वा, अस ज्यात १ अने मनताणा मेम त्रए
श्री. मरावती सूत्र :