Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? चत्वारि ज्ञानानि भजनया, एवं श्रुतज्ञानसाकारोपयुक्ता अपि, अवधिज्ञानसाकारोपयुक्ताः यथा अवधिज्ञानलब्धिकाः, मनापर्यवज्ञानसाकारोपयुक्ताः यथा मनःपर्यवज्ञानलब्धिकाः, केवलज्ञानसाकारोपयुक्ता यथा केवलज्ञानलब्धिकाः, मत्यज्ञानसाकारोपयुक्तानां त्रीणि उपयोगवाले जीवोंके पांच ज्ञान तथा तीन अज्ञान भजनासे होते हैं। (आभिणिबोधिय नाण सागारोवउत्ताणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?) हे भदन्त ! आभिनिबोधिक (मतिज्ञानवाले) साकार उपयोगवाले जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (चत्तारि णाणाई भयणाए) आभिनिवोधिक साकार उपयोगवाले जीव ज्ञानी ही होते हैं, अज्ञानी नहीं होते हैं। उनमें चार ज्ञान भजनासे होते हैं (एवं सुयनाण सागारोवउत्ता वि) इसी तरहसे श्रुतज्ञान साकार उपयोगवाले जीवोंको भी जानना चाहिये ( ओहिणाणसागारोवउत्ता जहा ओहिनाणलद्धिया, मणपजवनाण सागारोवउत्ता जहा मणपज्जवनाणलदिया, केवलनाणसागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धिया) अवधिज्ञान साकारोपयुक्त जीवोंको अवधिज्ञान लब्धिवाले जीवोंकी तरह जानना चाहिये। मन:पर्यवज्ञान साकार उपयोगवाले जीवोंको मनःपर्यव ज्ञान लब्धिवाले जीवोंकी तरह जानना चाहिये। केवलज्ञान साकार उपयोगवाले जीवोंको केवलज्ञान लब्धिवाले जीवोंकी तरह जानना चाहिये । (मइअमाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, एवं सुय अज्ञान माया होय छे. 'आभिणिबोहियनाणसागारोवउत्ताणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भगवान! मानिनिमाधि४ सा२ ५यागवामा ७१ जानी हाय मजानी डाय? 'चत्तारिनाणाई भयणाए' मालिनिमावि १२ ઉપગવાળા જીવ જ્ઞાની જ હોય છે. અજ્ઞાની હતા નથી અને તેઓ ભજનાથી ચાર जानवा हाय . ' एवं सुयनाणसागारोवउत्तावि' मेवी रीत श्रुतज्ञान साहार उपयोगपणा वान. ५ सभा . 'ओहिनाणसागरोवउत्ता जहा ओहिनाण लद्धिया मणपज्जवनाणसागरोवउत्ता जहा भणपज्जवनाणलद्धिया केवलनाण सागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धिया' भवधिज्ञान स२ ५ोगावाने અવધિજ્ઞાનલબ્ધિવાળા ની માફક સમજવા. મન:પર્યવજ્ઞાન સાકાર ઉપગવાળા છને મનઃપર્યાવજ્ઞાનલબ્ધિવાળા જીવોની માફક જ સમજવા. કેવળજ્ઞાન સાકાર ઉપગपावन अवज्ञान साधावानी भा३४ समनपा. 'मइअन्नाणसागारोव
श्री. भगवती सूत्र :