Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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चन्द्रिका टीका श. ८ उ. २ स्व. ११ ज्ञानगोचर निरूपणम्
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क्षेत्रं जानाति, पर्यात, कालतः खलु केवलज्ञानी सर्वं कालं जानाति, पश्यति, भावतः खलु केवलज्ञानी सर्वान् भावान् जानाति, पश्यति । गौतमः पृच्छति - 'मइअन्नाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ?' हे भदन्त ! त्यज्ञानस्य खलु कियान् विषयः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह - 'गोयमा ! समत्यज्ञानस्य विषयः, तद् वा मत्यज्ञानं समासतः संक्षेपेण चतुर्विधं प्रज्ञप्तम्, 'तंजहा Forओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, तद्यथा- द्रव्यतः, क्षेत्रतः, कालतः, भावतः, 'दaar णं मइनाणी मइअन्नाणपरिगयाई दव्वाई जाणार, द्रव्यतो मत्यज्ञानविषयं द्रव्यमाश्रित्य खल मत्यज्ञानी मत्यज्ञानपरिगतानि त्यज्ञाने मिथ्यादर्शनसंवलितेन अवग्रहेहादिना औत्पत्तिक्यादिना च परिगतानि केवलज्ञानी समस्त क्षेत्रको जानता है और देखता है, कालको अपेक्षा केवलज्ञानी समस्त कालको जानता है और देखता है, भावकी अपेक्षा केवलज्ञानी समस्त भावोंकों जानता है और देखता है । अब गौतम स्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'मइअन्नाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते' हे भदन्त ! मत्यज्ञानका विषय कितना कहा गया है ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम! 'से समासओ चउन्विहे पण्णत्ते' मत्यज्ञान का विषय या मतिअज्ञान संक्षेपसे चार प्रकारका कहा गया है । 'तंज' जो इस तरहसे है- 'दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओं' द्रव्यकी अपेक्षा, क्षेत्रकी अपेक्षा, कालकी अपेक्षा और भावकी अपेक्षा 'दव्वओ णं मड़अन्नाणी मह अन्नाणपरिगया इं दव्वाई जाणइ, पास' मत्यज्ञानी द्रव्यकी अपेक्षा लेकर मत्यज्ञान के विषयभूत हुए द्रव्योंको जानता है और देखता है। तात्पर्य कहनेका यह हैमिथ्यादर्शनके युक्त अवग्रह, ईहा आदिके द्वारा और औत्पत्तिकी
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ક્ષેત્રની અપેક્ષા વળજ્ઞાની સમસ્ત ક્ષેત્રને જાણે છે અને દેખે છે, ભાવની અપેક્ષાએ ठेवणज्ञानी सघणा लावने हो भने हे ऐ. प्रश्न :- मइअन्नाणम्स णं भंते । hare fare पण्णत्ते ' हे भगवान् भत्यज्ञानना विषय डेटा ह्या छे ? G:गोयमा' हे गौतम ! से समासओ चउबिहे पण्णत्ते' भतिज्ञाननो विषय संक्षिप्तथी यार प्रहारनो उडेल छे. ' तं जहा ' म 'दब्बओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ ' द्रव्यनी अपेक्षा, क्षेत्रनी अपेक्षा, अजनी अपेक्षा भने भावनी अपेक्षाओ Goaओ णं मइअण्णाणी मइ अन्नाणपरिगयाई दव्बाइ जाणड पासइ મત્યજ્ઞાની દ્રવ્યની અપેક્ષાને આશ્રય કરીને મત્યજ્ઞાનના વિષય ભૂત થયેલ દ્રબ્યાને જાણે છે અને દેખે છે. કહેવાના હેતુ એ છે કે મિથ્યાદા નથી મુક્ત અવગ્રાહ, હા, આફ્રિ
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬