Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ.२ मू. ९ लब्धिस्वरूपनिरूपणम् ४५७ पृच्छति-'तस्स अलद्धिया णं पुच्छा' तस्य श्रोत्रेन्द्रियस्य अलब्धिकाः खलु जीवाः किं ज्ञानिनो भवन्ति, अज्ञानिनो वा ? इति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा ! नाणी वि, अन्नाणी वि' हे गौतम ! श्रोत्रेन्द्रियालब्धिका जीवाः ज्ञानिनोऽपि भवन्ति, अज्ञानिनोऽपि, 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुम्नाणी, अत्थेगइया एगनाणी' ये श्रोत्रेन्द्रियालब्धिका ज्ञानिनस्ते सन्ति एकके केचन द्विज्ञानिनो भवन्ति, सन्ति एकके तु एकज्ञानिनो भवन्ति, 'जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी, जे एगनाणी ते केवलनाणी' ये द्विज्ञानिनस्ते आभिनिबोधिकज्ञानिनः श्रुतज्ञानिनो भवन्ति, ये एकज्ञानिनस्ते केवलज्ञानिनो भवन्ति, तथा च श्रोत्रेन्द्रियालब्धिमन्तो जीवा ये ज्ञानिनस्ते प्रथमद्वयज्ञानशालिनः, ते च अपर्याइनमें अज्ञानी होते हैं वे भजनासे तीन अज्ञानवाले होते हैं । ___अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' हे भदन्त ! जो जीव श्रोत्रइन्द्रियके लब्धिवाले नहीं होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा नाणी वि अन्नाणी वि' हे गौतम ! श्रोत्रहन्द्रियकी अलब्धिवाले जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं- 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी, अत्यंगइया एगनाणी' जो इनमें ज्ञानी होते हैं उनमें कितनेक दो ज्ञानवाले होते हैं और कितनेक एक ज्ञानवाले होते हैं । 'जे दुन्नाणो ते आभिणिबोहियनाणी, सुयनाणी य' जो दो ज्ञानवाले होते हैं उनमें आभिनिबोधिक ज्ञानवाले और श्रुतज्ञानवाले होते हैं । 'जे एगनाणी ते केवल नाणी' और जो एक ज्ञानी होते हैं वे केवलज्ञानी ही होते हैं। यहां पर जो श्रोत्रेन्द्रियालब्धिक जीवोंको दो ज्ञानवाला कहा गया है उनमें अपर्याप्तक सासादन गुण'तस्स अलद्धियाणं पुच्छा' मन्त! 4 श्रीनद्रिय विमानहाय . तमा सानी छाय छे अज्ञानी डाय छ ? 8.:- 'गोयमा' गौतम ! 'नाणी वि अन्नाणी वि' श्रोत्र दिया ज्ञानी ५९ डाय छे मन मशानी ५५ डाय . 'जे नाणी ते अत्थेगइया दुन्नाणी, अत्थेगइया एगनाणी' तमामा sea से ज्ञानवाणा भने ४४ ज्ञानवाणा हाय छ जे दुनाणी ते आभिणिबोहियनाणी य, सुयनाणी यने मे जानवा डाय छे मालिनिमाधि जान भने श्रुतज्ञानवाणा होय छे. 'जे एगनाणी ते केवलनाणी' भनेरे मे जानवाणा हाय છે તે ફકત કેવળજ્ઞાનવાળા જ હોય છે. અહીંઆ શ્રોત્રેદ્રિયલબ્ધિવાળા અને બે જ્ઞાનવાળા કહ્યા છે. તેમાં અપર્યાપ્તક સાસાદન ગુણસ્થાનમાં રહેવાવાળા સમ્યક્ દષ્ટિ
श्री. भगवती सूत्र :