Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. २ व. ६ ज्ञानभेदनिरूपणम्
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मात् । देवगतिकाः यथा निरयगतिकाः । सिद्धगतिकाः खलु भदन्त ! यथा सिद्धाः १ सेन्द्रियाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? गौतम ! चत्वारि ज्ञानानि त्रीणि अज्ञानानि भजनया, एकेन्द्रियाः खलु भदन्त ! जीवाः किं ज्ञानिनः, अज्ञानिनः ? यथा पृथिवीकायिकाः, द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतुरिन्द्रिहे भदन्त ! मनुष्यगतिकजीव मनुष्यगतिमें रहे हुए जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तिन्नि नाणाई भयणा, दो अन्नाणा नियमा) मनुष्यगतिक जीव ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं । ज्ञानियोंमें तीनज्ञान भजनासे होते हैं और अज्ञानियोंमें दो अज्ञान नियमसे होते हैं । (देवगइया जहा निरयगइया) देवगतिक जीव निरयगतिकके समान जानना चाहिये । (सिद्धगइयाणं भंते !) हे भदन्त ! सिद्धगतिक जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( जहा सिद्धा) हे गौतम! सिद्विगतिक जीव सिद्धजीवोंकी तरहसे होते हैं । अर्थात् ज्ञानी होते हैं । ( सइंदियाणं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी) हे भदन्त ! सेन्द्रिय जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( गोयमा) हे गौतम! ( चत्तारि नाणाई तिन्नि अन्नाणाई भयणाए ) उनके चार ज्ञान भजनासे होते हैं और तीनअज्ञान भजनासे होते हैं । (एगिंदियाणं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?) हे भदन्त एकेन्द्रिय जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? ( जहापुढविकाइया) हे गौतम एकेन्द्रिय जीव पृथिवीकायिक जीवोंकी तरहसे અને બે અજ્ઞન હેાય છે. 6 मस्सगइयाणं भंते! जीवा किं नाणी अन्नाणी ' હે ભગવન્ ! મનુષ્યગતિક જીવ-મનુષ્યગતિમાં રહેતા જીવ શુ જ્ઞાની હોય છે કે અજ્ઞાની डोय छे ? 'गोयमा' हे गौतम! ' तिन्नि नाणाई भयणाए, दो अन्नाणाई नियमा' મનુષ્યગતિમાં રહેતા જીવ જ્ઞાની પણ હાય છે અને અજ્ઞાની પણુ. જ્ઞાનીમાં ત્ર ज्ञान भन्ननाथी होय छे अने अज्ञानीमोम मे अज्ञान नियमयी होय छे. 'देवगइया जहा निरयगइया' देवगतिना कब नैरविगतिना જીવ પ્રમાણે सभवा. 'सिद्धगइयाणं भंते' हे भगवन् सिद्धगतिलव ज्ञानी होय छे ! अज्ञानी ? 'जहासिद्धा' ते सिद्धलोनी समान होय छे. अर्थात- ज्ञानी होय छे. 'सइंदियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भगवन् ! न्द्रियवाणा कवा ज्ञानी होय हे अज्ञानी होय छे ? 'गोयमा' हे गौतम! ' चत्तारि नाणाई, तिनि अम्नाणाई भयणाए ' भन्ननाथी तेभना यार ज्ञान मने भए अज्ञान होय छे. 'एर्गिदियाणं भंते जीवा किं नाणी अन्नाणी' हे भगवन ! भेडेन्द्रियव ज्ञानी होय छे हैं अज्ञानी ? 'जहा पुढविकाइया'
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬