Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ८ उ.२ सू. ५ ज्ञानभेदनिरूपणम् ३७९ विकाइया जहा एगिदिया, एवं जाव चउरिदिया' पर्याप्तकाः पृथिवीकायिकाः यथा एकेन्द्रियाः नो ज्ञानिनः, अपि तु द्वयज्ञानिन: प्रतिपादिताः तथा नोज्ञानिनः, अपितु मत्यज्ञान-श्रुताज्ञानलक्षणद्वयज्ञानिनो भवन्ति, एवं पृथिवीकायिकवदेव यावत्-पर्याप्तकाः अपकायिकाः, तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः, वनस्पतिकायिकाः, द्वीन्द्रियाः त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रिया अपि नियमतः द्वथज्ञानिन एव भवन्ति इति भावः । गौतमः पृच्छति-पज्जत्ता णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया कि नाणी अनाणी ?' हे भदन्त ! पर्याप्तकाः खलु पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः किं ज्ञानिनों भवन्ति, अज्ञानिनो वा भवन्ति ? भगवानाह 'तिन्नि नाणा, तिन्नि अन्नाणा भयणाए' हे गौतम ! पर्याप्तकानां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि च भजनया भवन्ति, पर्याप्तकपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः केचिद् कुमार, वायुकुमार, स्तनितकुमार, भी नियमसे त्रिज्ञानी ओर व्यज्ञानो कहना चाहिये । 'पुढविक्काइया जहा एगिदिया एवं जाव चउरिदिया' जिस प्रकार एकेन्द्रिय ज्ञानी नहीं, किन्तु दोअज्ञानवाले कहे गये हैं उसी प्रकारसे पर्याप्तक पृथिवीकायिक ज्ञानी नहीं होते हैं, किन्तु मत्यज्ञान अताज्ञानरूप दो अज्ञानवाले होते हैं। पृथिवीकायिककी तरह ही यावत् पर्याप्तक, अपकायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, हीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय भी नियमसे दोअज्ञानवाले ही होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभुसे पूछते हैं 'पजत्ताणं भंते ! पंचिंदिया तिरिक्खजोणिया किंनाणी अन्नाणी' हे भदन्त ! पर्याप्तक पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? उत्तरमें प्रभु कहते हैं 'तिन्निनाणा, तिन्नि अन्नाणा भयणाए' हे गौतम ! कोई२ पर्याप्तक पंचेन्द्रिय तियग्योनिक मतिज्ञानवाले, श्रुतज्ञानवाले और अवधिज्ञान १९ जान भने । अज्ञान होय छे. 'पुढविकाइया जहा एगिदिया एवं जाव चउरिदिया' पाशते शन्द्रिय सपने में माना ४ा छ ते४ रीत પર્યાપ્તક પૃથ્વીકાયિક, મત્યજ્ઞાન, અને શ્રુતજ્ઞાનરૂપ બે અજ્ઞાનવાળા હોય છે. પૃથ્વીકાયિકની માફકજ યાવ-પર્યાપ્તક, અપૂકાયિક, તેજસ્કાયિક, વાયુકાયિક, वनस्पतिय, धन्द्रियो ५९ नियमथा में अज्ञान होय छे. प्रश्न:- पज्जत्ताणं मंते पंचिंदिया तिरिक्ख जोणिया किं नाणी अन्नाणी' ? है भगवन ! पर्याप्त पश्यन्द्रिय तियेय योनी शुज्ञानी होय छे , भज्ञानी खाय छ ? 8.-'तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए' है गौतम ! यात पयन्द्रिय तियेय योनिक જીવ, મતિજ્ઞાન શ્રુતજ્ઞાનવાળા અને અવધિજ્ઞાનવાળા હોય છે, અને કઈ કઈ પર્યાપ્તક
श्री. भगवती सूत्र :