Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे छाया-चत्वारिभदन्त ! द्रव्याणि किं प्रयोगपरिणतानि, मिश्रपरिणतानि विस्त्रसापरिणतानि ? गौतम ! प्रयोगपरिणतानि वा, मिश्रपरिणतानि वा, विसासापरिणतानि वा,अथवा एकं प्रयोगपरिणतं त्रीणि मिश्रपरिणतानि १, अथवा एकं प्रयोगपरिणत त्रीणि विस्रसापरिणतानि २, अथवा द्वे प्रयोगपरिणते, द्वे मिश्रपरिणते ३, अथवा द्वे प्रयोगपरिणते, द्वे विस्रसा परिणते ४, अथवा त्रीणि प्रयोगपरिणतानि,एक मिश्रपरिणतम् ५, अथवा त्रीणि प्रयोगपरिणतानि, एक विस्रसापरिणतं
'चत्तारि भंते ! दव्वा किं पओगपरिणया' इत्यादि ।
सूत्रार्थ-( चत्नारि भंते ! दव्वा किं पओगपरिणया) हे भदन्त ! चार द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं ? या मिश्रपरिणत होते हैं ? या विस्रमापरिणत होते हैं ? (गायमा) हे गौतम ! (पओगपरिणया वा, मीसा परिणया वा, वीमसापरिणया वा) चार द्रव्य प्रयोगपरिणत भी होते हैं, मिश्रपरिणत भी होते हैं, विरसा परिणत भी होते हैं (अहवा एगे पोगपरिणए, निन्नि मीमापरिणया) अथवा एकप्रयोगपरिजत होता है । बाकीके तीन मिश्रपरिणत होते हैं (अहवा एगे पओगपरिणए, तिनि वीससापरिणया) अथवा एकप्रयोगपरणित होता है बाकोके तीन वित्रसापरिणत होते हैं २, (अहवा दो पओगपरिणया, दो मीसापरिणया३) अथवा दो प्रयोगपरिणत होते हैं और दो मिश्रपरिणत होते हैं ३, (अहवा दो पओगपरिणया, दो वीससा परिणए४) अथवा दो प्रयोगपरिणत होते हैं दो विस्रमापरिणत होते हैं ४, (अहवा तिन्नि पओगपरिणया, एगे मीसापरिणए ५) अथवा तीन पयोगपरिणए होते हैं 'चत्तारि भंते दबा किं पओगपरिणया इत्यादि"
सुत्राथ-'चत्तारि भंते दव्या किं पओगपरिणया' हे मावन या२ द्रव्यो थे प्रयोगपरिरात डाय छ भित्र परिणत हाय छे , (१२सा परिणत डाय छ 'गोयमा हे गौतम ! 'पओगपरिणया मीसापरिणया वीमसा परिणया वा' या२ द्रव्य प्रयोगायरियत, भित्र परिणत भने विखसा परिणत । छ. 'अहवा एगे पोगपरिणए तिन्नि मीसा परिणया' भयवा से प्रयोगपरिणत डाय छ भने माडीना त्रष्णु मिश्र परिणत डाय छ ? ' अहवा एगे पओगपरिणए तिन्नि वीससा परिणया, અથવા એક પ્રયોગ પરિણત હોય છે બાકીના ત્રણ વિઐસા પરિણત હોય છે ૨ 'अहवा दो पओगपरिणया, दो मीसा परिणया' ५५१ २ ६०५ अयोगपरियत डाय छ भने मे भित्रपरिणत डाय 3. 'अहवा दो पओगपरिणया दो वीससा परिणया' या द्रव्या प्रयोग परिष्यत डाय छे मन में विससा परिणत हाय.४
श्री. भगवती सूत्र :