Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रो खलु भदन्त ! किं ज्ञानिनः ? अज्ञानिनः ? गौतम ! नो ज्ञानिनः, अज्ञानिनः, ये अज्ञानिनस्ते नियमात् द्वयज्ञानिनः मत्यज्ञानिनश्च, श्रुताज्ञानिनश्च, एवं यावत् वनस्पनिकायिकाः, द्वीन्द्रियाः खलु पृच्छा ! गौतम ! ज्ञानिनोऽपि, अज्ञानिनोऽपि, यिकोंके विषयमें कहा गया है-वैसा ही इनके विषयमें भी जानना चाहिये । जो असुरकुमार ज्ञानी होते हैं वे नियमसे तीनज्ञानवाले होते हैं। (तिन्नि अण्णाणाणि भयणाए) और जो असुरकुमार अज्ञानी होते हैं उनमें कोईतो दो अज्ञानवाले होते हैं और कोई२ तीन अज्ञानवाले होते हैं । ( एवं जाव थणियकुमारा) इसी तरहसे यावत् स्तनितकुमारोंके विषयमें भी ज्ञानी अज्ञानीकी अपेक्षासे कथन जानना चाहिये । ( पुढविक्काइया णं भंते ! किं नाणी, अन्नाणी ) हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! पृथिवीकायिक जीव (नो नाणी, अण्णाणी) शानी नहीं होते हैं अपितु अज्ञानी ही होते हैं । (जे अन्नाणी, ते नियमा दुअन्नाणी) जो अशानी होते हैं, वे नियमसे दो अज्ञानवाले होते हैं (मह अन्नाणी, य सुय अन्नाणीय) एक मति अज्ञानवाले और दूसरे श्रुत अज्ञानवाले ( एवं जाव वणस्सइकाइया) इसी तरहसे बनस्पतिकायिक जीवोंके विषयमें भी जानना चाहिये (बेइंदियाणं पुच्छा) हे भदन्त ! जो द्वीन्द्रियजी होते हैं वे क्या ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (णाणी वि अन्नाणी थि) शानी डाय छे ते नियमथा न जाना हाय छ 'तिन्नी अन्नाणाणि भयणाए' અને જે અસુરકુમાર અજ્ઞાની હોય છે તેમાં કોઈ તે બે અજ્ઞાનવાળા અને કેઈ ત્રણ सजानवा डाय छे. 'एवं जाव थगियकुमारा' मा शत यावत् स्तनितमारना विषयमा ५२५ जानी मानीनी अपेक्षा ४थन सभ७ स. 'पुढविक्काइया णं भंते किं नाणी अन्नाणी' भगवन्! पृथ्वी।यि ७५ जना डॉय छ है अशानी ? 'गोयमा' गौतम! 2ीय ७५ 'नो नाणी अन्नाणी' जानी खाता नयी पy श्मशानी हाय छे. 'जे अन्नाणी ते नियमा दुअन्नाणी' 2 जानी डाय छ त नियमथी में जानाजाय छे. ' मइअन्नाणी य सुयअनाणी य' मे भात
जान अने. मी श्रुत मानहाय छे. एवं जाव वणस्सइकाइया' स शत यावत वनस्पति 43 सोना विषयमा ५ सम से. 'बेइंदियाणं પ્રા ? હે ભદન્ત ! જે દીન્દ્રિય જીવ હોય છે તે શું જ્ઞાની હોય છે કે અનાની ! 'गोयमा' हे गौतम ! 'नाणी वि अन्नाणी वि मेन्द्रिय ७१ शानी ५५५
श्री. भगवती सूत्र: