Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. १ सृ. २० सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् २०५ परिणत किं तिक्तरसपरिणत ५ पृच्छा ? गौतम । तिक्तरसपरिणत वा, यावत् मधुररसपरिणत वा । यदि स्पर्शपरिणतं किं कर्कशस्पर्शपरिणतं यावत्- रूक्षस्पर्शपरिणतम् ? गौतम ! कर्कशस्पर्शपरिणत वा, यावत् - रूक्षस्पर्शपरिणत वा । यदि संस्थानपरिणतं पृच्छा ? गौतम ! परिमण्डलसंस्थानपरिणत वा, यावत् आयत संस्थानपरिणतं वा । ९ ॥ सू० २० ॥
दुभिगंधपरिणए वा ) गंधरूपसे परिणत हुआ वह द्रव्य सुरभिगंधरूपसे भी परिणत होता है और दुरभिगंधरूपसे भी परिणत होता है । (जइ रसपरिणए किं तित्तरसपरिणए पुच्छा) हे भदन्त । यदि वह द्रव्यरसपरिणत होता है तो क्या वह तिक्तरसपरिणत होता है, या कटुरस परिणत होता है, या कषायरसपरिणत होता है, या अम्ल (खट्टा ) रसपरिणत होता है, या मधुररसपरिणत होता क्या ? (गोयमा) हे गौतम! (तित्तर सपरिणए वा, जाव महुररसपरिणए वा) रसपरिणत वहद्रव्य तिक्तरसपरिणत भी होता है, यावत् मधुररसपरिणत भी होता है । ( जइ फासपरिणए किं कक्खडफासपरिणए जाव लुक्खफासपरिणए) हे भदन्त ! यदिवह द्रव्यस्पर्श परिणत होता है तो क्या वह कर्कशस्पर्शपरिणत होता है ? या यावत्रूक्ष स्पर्शपरिणत होता है ? ( गोयमा) हे गौतम ! (कक्खडफासपरिणत वा जाव लुक्खफासपरिणए वा) स्पर्शपरिणत वह द्रव्यकर्कशस्पर्श रूप में भी परिणत होता है यावत् रूक्षस्पर्शरूपमें भी परिणत होता है । (जह संठाणपरिणए डाय छ ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( सुब्भिगंधपरिणए वा, दुब्भिगंधपरिणए वा ) તે ગધપરિણત દ્રવ્ય સુગ ંધરૂપે પણ પરિણમે છે અને દુર્ગંધરૂપે પણ પરિણમે છે. ( ज रसपरिणए कि तित्तरसपरिणए पुच्छा ) ड़े महन्त ! ले ते द्रव्य रस પરિણમન પામે છે, તે શું તે તિકતરસરૂપે પરિણમે છે? કે કટુરસરૂપે પરિણમે છે? કે उषाय (तुरा) रस३ये परिणमे छे ? } सम्म (पाटा) रस३पे परिशुभे छे ? हे मधुररस३ये परिशुभे छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( तित्तरसपरिणए बा, जाव मधुररस परिणए वा ) रसपरित ते द्रव्य तिस्तथी सधने मधुर पर्यन्तना परिस परिशु छे. ( जइ फासपरिणए, किं कक्खडफासपरिणए जाव लुक्खफासपरिणए ? ) लन्त ! लेते द्रव्य स्पर्श परिणत होय छे, तो शु ते ४४श स्पर्श परिणत होय छे ? } ३क्ष पर्यन्तना स्पर्शपरिणत होय छे ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( कक्खडफासपरिणए वा, जाव लुक्खफासपरिणए वा ) स्पर्श परिणत ते द्रव्य
थी सहने क्ष पर्यन्तना मध स्पर्श३ये परिशुमन पामे छे. ( जइ संठाण
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬