Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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२०८
भगवती
शुक्लवर्णपरिणत भवति । गौतमः पृच्छति - 'जइ गंधपरिणए किं सुब्भिगंधपरिणए, दुभिगंधपरिणए ?" हे भदन्त ! यद्द्रव्यं गन्धपरिणत ं तत् किं सुरभिगन्धपरिणत, दुरभिगन्धपरिणतं भवति ? भगवानाह 'गोयमा ! सुरभिगंधपरिणए वा दुब्भि गंधपरिणए वा' हे गौतम! गन्धपरिणत द्रव्यं सुरभिगन्धपरिणतं वा भवति, दुरभिगन्धपरिणतं वा भवति गौतमः पृच्छति - 'जइ रसपरिणए किं तित्तरसपरिणए.५१ पुच्छा हे भदन्त ! यद् द्रव्यं रसपरिणत तत् किं तिक्तरसपरिणत भवति ? कटुरसपरिणत, भवति, कषायरसपरिणतं भवति, अम्लरसपरिणत, मधुररस परिणतं भवति, इति पृच्छा, भगवानाह - 'गोयमा ! तित्तरसपरिणए बा, जाव वर्णरूपसे भी परिणत होता है। अब गौतमप्रभुसे ऐसा पूछते हैं 'जइ गंध परिणए, किं सुभिगंधपरिणए, दुब्भिगंधपरिणए' हे भदन्त ! जो द्रव्य गंधरूपसे परिणत होता है वह क्या सुरभिगंधरूप से परिणत होता है ? या दुरभिगंधरूप से परिणत होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! सुभिगंधपरिणए वा दुभिगंधपरिणए वा' गंध परिणत वह द्रव्यसुरभिगंधरूप से भी परिणत होता है और दुरभिगंधरूपसे भी परिणत होता है । अब गौतमस्वामी प्रभुसे ऐसा पूछते हैं कि ' जइ रसपरिणए, किं तित्तरसपरिणए १५ पुच्छा' हे भदन्त ! जो द्रव्य रसपरिणत होता है वह क्या तिक्तरसरूपमें परिणत होता है ? या कटुरसरूपमें परिणत होता है या कषायरस रूप में परिणत होता है ? या अम्लरस रूप में परिणत होता है ? या मधुररसरूपमें परिणत होता है क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'तित्तर सपरिणए किं सुभिगंधपरिणए, दुब्भिगंधपरिणए' હોય છે. તે શું તે સુરભિગ ધ - સુગંધથી ધરૂપથી પરિણત હોય છે ?
પ્રશ્ન
अभ - ' जइ गंधपरिणए, હે ભગવન્ જો દ્રવ્ય ગંધરૂપથી પરિણત પરિણત હોય છે ! કે દુરભિગંધ – દુર્ગં ઉત્તર - ' गोयमा' हे गौतम! 'सुभगंधपरिणए वा, दुब्भिगंध परिणए वा ' सुरभिगंध - सुगंधपथी पण परिश्रुत हेय मने दुरभिगंधદુગંધરૂપથી પણ પરિણત ાય છે ?
प्रश्न- जइरस परिणए, तित्तरसपरिणए (५) पुच्छा - हे भगवान् ले ते દ્રવ્ય રસ પરિણત હોય છે તેા તિકત (તીખા) રસરૂપથી પરિણત હોય છે કે કટુ (કડવા) રસરૂપથી પિરણત હોય છે અગર કષાય (તુરા) રસરૂપથી પરિણત હોય છે. અથવા अम्ल (माटो) २सयथी परिश्रुत होय छे अथवा मधुर (भीडी) रसथी परिशुत होय ?
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬