Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवती सूत्रे
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भगवानाह - 'गोयमा ! एर्गिदियकम्मासरीर कायप्पओग०' हे गौतम ! कार्मण शरीरकायप्रयोगपरिणतं द्रव्यम् एकेन्द्रियकार्मणशरीरकायप्रयोगपरिणतं भवति, ' एवं जहा ओगाहणसं ठाणे कम्मगस्स भेदो तहेव इहावि, एवं यथा अवगाहनासंस्थाने कार्मणस्य भेदो निरूपितस्तथैवात्रापि तद्भेदो बोध्यः, तथाचोक्त प्रज्ञापनायाम् एकविंशतितमे पदे- 'बेइंदिय कम्मासरीरकायप्पओगपरिणए वा, एवं तेइंदिय० चउरिंदिय० ' इत्यादि प्रश्नोत्तरं द्रष्टव्यम्, पज्जतसम्बद्धसिद्ध अणुत्तरोत्रवाइय- जाव देवप चिंदियकम्मासरीरकायप्पओगपरिणए' कार्मण शरीरकायप्रयोगपरिणत द्रव्यं यावत् द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय- चतु होता कहा गया है ? यावत् द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रियके कार्मणशरीरकाय प्रयोग से परिणत होता कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगिंदियकम्मा सरीरका
'जात्र
पओ० ' कार्मणशरीरकायप्रयोगसे परिणत वह द्रव्य एकेन्द्रियके कार्मणशरीरकाय प्रयोगसे परिणत होता कहा गया है । ' एवं जहा ओगाहणसंठाणे कम्मगस्स भेदो तहेव इहावि' इस तरहसे जैसा अवगाहना संस्थानमें कार्मणशरीरकायप्रयोगकाभेद निरूपित किया गया है, वैसा ही यहां पर भी उसका भेद जानना चाहिये । सो ही प्रज्ञापनाके २१ वें पदमें कहा गया, ' बेइंदियकम्मासरीरकायप्पओगपरिणए वा, एवं तेइंदिय०, चउरिंदिय०, इत्यादि' यह प्रश्नोत्तर देख लेना चाहिये । 'जाव पज्जत्तसव्वट्टसिद्ध अणुत्त विवाइय जाव देवपंचिदिय कम्मासरीरकायप्पओगपरिणए' कार्मणशरीरकाय प्रयोगपरिणत ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રય અથવા પંચેન્દ્રિયના કામ ણુશરીરકાયપ્રયાગથી પરિણત થાય છે? ઉત્તર गोयमा ! ' हे गौतम 'एगिदिय कम्मासरीरकाय प्पओगपरिणए. ' ते द्रव्य सोडेन्द्रियना अभशु शरीराय प्रयोगथी पशु परिशुत थाय छे, ' एवं जहा ओगाहणसंठाणे कम्मगस्स भेदों व इहात्रि' मा अमालेवी रीते प्रज्ञापना સુત્રના અવગાહના સંસ્થાન પત્રમાં કાણુશરીરકાયપ્રયોગના ભેદૅનું નિરૂપણ કરવામાં આવ્યુ છે, એવું જ તેમના ભેદ્યનું કયન અહીં પણુ સમજવું. પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના ૨૧ માં यहां छे – 'बेइं दिय कम्मासरीरका यप्पओगपरिणए वा, एवं तेइंदिय, चरिदिय त्याहि ते द्रव्य हीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, यतुरिन्द्रिय मने पथेन्द्रियना કામ ણુશરીરકાયપ્રયાગથી પશુ પરિત હોય છે.' આ પ્રશ્નોત્તરા ત્યાંથી જોઇ લેવા.
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जात्र पज्जत सव्वट्टसिद्ध अणुत्तरोत्रवाइय जाव देवपचिदिय कम्मासरीर
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૬
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