Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ममेयचन्द्रिका टीका श.८ उ. १ मू.७ सूक्ष्मपृथ्वीकायस्वरूपनिरूपणम् ९७ अपि, नीलवर्णपरिणता अपि, लोहितवर्णपरिणता अपि, हारिद्रवर्णपरिणता अपि, शुक्लवर्णपरिणता अपि भवन्ति । एवं 'गंधओ मुभिगंधपरिणया वि, दुभिगंधपरिणया वि' ये अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथिवीकायिकैकेन्द्रियपयोगपरिणताः पुद्गलास्ते गन्धतः सुरभिगन्धपरिणता अपि, दुरभिगन्धपरिणता अपि भवन्ति । एवं 'रसओ तित्तरसपरिणया वि, कडुयरसपरिणया वि, कसायरसप० अंबिलरसप० महुररसप०' ये अपर्याप्तकमूक्ष्मपृथिवीकायिकैकेन्द्रियप्रयोगपरिणताः पुद्गलाः प्रज्ञप्तास्ते रसतस्तिक्तरसपरिणता अपि, कटुकरसपरिणता अपि, कालेवर्ण रूपसे भी परिणत होते हैं, नीलवर्णरूपसे भी परिणत रहा करते हैं, लोहित लाल वर्णरूपसे भी परिणत रहा करते हैं हारिद्रवर्ण रूपसे भी परिणत रहा करते हैं, शुक्लवर्ण रूपसे भी परिणत रहा करते हैं, "एवं गंधओ-सुब्भिगंधपरिणया वि, दग्भिगंध परिणया वि' इसी तरह वे पुद्गल गंधगुणकी अपेक्षा सुगंधिरूपमें भी परिणत रहा करते हैं, दुरभिगंधरूपमें भी परिणत रहा करते हैं अथवा इस पूर्वोक्त कथनका तात्पर्य ऐसा भी हो सकता है कि जो पुद्गल अप
र्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक एकेन्द्रियके प्रयोगसे परिणत हुए हैं वे पुद्गल वर्णसे कालादिवर्णरूपमें भी परिणत हो जाते हैं-गंधसे सुगंधिरूप में एवं दुरभिगंधरूप में भी परिणत हो जाते हैं। 'एवं रसओ-तिन रसपरिणया वि, कडुयरस परिणया वि, कसायरसपरिणया वि, अंबिल. रसपरिणया वि, महुररसपरिणया वि०' इसी तरह से वे ही अपर्याप्तकसूक्ष्मपृथिवीकायिक एकेन्द्रियके प्रयोगसे परिणत कहे गये पुद्गल વર્ણની અપેક્ષાએ કાળાવર્ણરૂપે પણ પરિણમે છે, નીલવર્ણરૂપે પણ પરિણમે છે, લાલવર્ણરૂપે પણ પરિણમે છે, પીળાવર્ણરૂપે પણ પરિણમે છે અને શુકલવર્ણરૂપે પણ परिणभे छ. "एवं गंधओ-मुब्भिगंध परिणया वि, दुभिगंधपरिणया वि' તે પુદગલે ગંધગુણની અપેક્ષાએ સુગંધરૂપે પણ પરિણમન પામતાં રહે છે અને દુગધરૂપે પણ પરિણમન પામતાં રહે છે. અથવા આ કથનનું તાત્પર્ય એવું પણ થઈ શકે છે કે જે પુદગલે અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિક એકેન્દ્રિયના પ્રયોગથી પરિણત થયાં હોય છે, તે પુદગલ કાળાદિ વર્ણરૂપે પરિણમી જાય છે. અને ગંધની અપેક્ષાએ सुगध३थे भने दुग ३५ परिभी तय छे. “एवं रसओ-तित्तरसपरिणया वि, कडुयरसपरिणया वि, कसायरसपरिणया वि, अंबिलरसपरिणया वि, महुररसपरिणया वि' मे प्रमाणे ते अपर्याप्त सक्ष्म वीयि सन्दियाना પ્રગથી પરિણત થયેલાં જે પુદગલે હોય છે, તેઓ રસ (સ્વાદ) ની અપેક્ષાએ તીખા
श्री. भगवती सूत्र :