Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 06 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीमृगे यावत् परिणतं वा, पञ्चेन्द्रिय यावत् परिणतं वा । यदि एकेन्द्रिय यावत् परिणत किं वायुकायिकैकेन्द्रिय - यावत्-परिणतम् अवायुकायिकैकेन्द्रिय यावत् परिणतम् ? गौतम ! वायुकायिकैकेन्द्रिय यावत् परिणतम् नो अवायुकायिक-यावत्-परिणतम् । एवम् एतेन अभिलापेन यथा अवगाहनासंस्थाने वैक्रियशरीरं भणितं तथा इहाऽपि भणितव्यम् यावत् पर्याप्तकसर्वार्थसिद्धानुत्तरौपपातिककल्पातीतकवैमानिकदेवपञ्चेन्द्रियवैक्रियशरीरकायप्रयोगपरिणतं चा, अपर्याप्तकसर्वार्थसिद्ध०कायप्रयोगपरिणत वा ॥ सू० १५ ॥ वैक्रियशरीरकायप्रयोगसे भी परिणत होता है पंचेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकायप्रयोगसे भी परिणत होता है । (जह एगिदिय जाव परिणए किं वाउकाइय एगिदिय जाव परिणए, अचाउकाइय एगिदिय जाव परिणए) यदिवह एकेन्द्रियके वैक्रियशरीरकाय प्रयोगसे परिणत होता है तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियके वैक्रियशरीर कायप्रयोग से परिणत होता है या जो अवायुकायिक एकेन्द्रिय हैं उनके वैक्रियशरीरकायप्रयोगसे परिणत होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! (वाउ. काइय एगिदिय जाव परिणए, नो अवाउक्काइय जाव परिणए) वह द्रव्य वायुकायिक एकेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकायप्रयोगसे परिणत होता है अवायुकायिक एकेन्द्रियके वैक्रिय शरीरकाय प्रयोगसे परिणत नहीं होता है । (एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्यिसरीरं भणियं तहा इह वि भाणियव्वं ) इस तरह इस अभिलापसे प्रज्ञापनासूत्र के अवगाहना संस्थान पदमें वैक्रिय शरीरके संबंध में जैसा कहा गया है પણ પરિણત હોય છે, દીન્દ્રિય, ત્રીન્દ્રિય, ચતુરિન્દ્રિય અને પંચેન્દ્રિયના વૈકિયશરીરકાયप्रयोगथा ५५ परिणत डाय छे. (जइ एगिदिय जाच परिणए कि वाउक्काइय एगिदिय जाव परिणए, अबाउक्काइय एगिदिय जाव परिणए ?) नेते એકેન્દ્રિયના વૈક્રિયશરીરકાયપ્રયોગથી પરિત હોય છે, તો શું તે વાયુકાયિક એકેન્દ્રિયના વૈક્રિયશરીરકાય પ્રયોગથી પરિણત હોય છે, કે જે અવાયુકાયિક એકેન્દ્રિય છે તેમના वै७ि५५२।२४।यप्रयोगथा परिणत है।य छ ? ( गोयमा ) गौतम! वाउक्काइय एगिदिय जाव परिणए, नो अबाउककाइय जाव परिणए ) द्रव्य पायुायि એકેન્દ્રિયશરીરકાયપ્રયોગથી પરિણત હોય છે, અવાયુકાયિક એકેન્દ્રિયના વૈકિયશરીરકાયપ્રોગથી परिणत हातुं नथा. ( एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउब्विय सरारं भणियं तहा इह वि भाणियव्वं ) २॥ शत २॥ २ममिला५ ६॥२॥ प्रज्ञापना સૂત્રના અવગાહના સંસ્થાન પદમાં વૈકિય શરીર વિષે જે પ્રમાણે કહ્યું છે, એ જ પ્રમાણે
श्री. भगवती सूत्र :