Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
महाभूतों की उत्पत्ति होती है ।' सांख्यमत के २५ तत्त्वों में से बाकी सबका क्रम और स्वरूप हम पहले बता चुके हैं।
___ वैशेषिकदर्शन भी पाँच महाभूत को मानता है। उसकी मान्यता यह है कि द्रव्य नौ हैं --- पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन । पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये पाँच द्रव्य पंचभूत हैं। पृथ्वी, जल, तेज, और वायु ये ४ द्रव्य (भूत) प्रत्येक नित्य और अनित्य दो प्रकार के हैं। परमाणुरूप पृथ्वी जल आदि नित्य हैं, किन्तु परमाणुओं के संयोग से बने हुए द्व यणुक आदि स्थूल कार्य द्रव्य पृथ्वी आदि अनित्य हैं। आकाश द्रव्य किसी कारण से उत्पन्न न होने से नित्य ही है । पृथ्वीत्वरूप धर्म के सम्बन्ध से पृथ्वी होती है। वह परमाणुरूप नित्य है, और द्व यणुकादि क्रम से उत्पन्न होने वाली कार्यरूपा पृथ्वी अनित्य है। वह पृथ्वी रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमाण. पृथकत्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, गुरुत्व, द्रवत्व और वेग नामक चौदह गुणों से युक्त है तथा जलत्व रूप धर्म के सम्बन्ध से जल होता है । वह भी रूप, रस, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथकत्व, संयोग, विभाग, गुरुत्व स्वाभाविक द्रवत्व, स्नेह और वेग नामक गुणों से युक्त है। जल का रूप शुवल है, स्पर्श शीत ही है। तेजस्व धर्म सम्बन्ध से तेज होता है । वह रूप, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व नमित्तिक द्रवत्व, और वेग नामक ११ गुणों से युक्त होता है। उसका रूप शुक्ल, भास्वर (चमकीला) तथा स्पर्श उष्ण ही है । वायुत्वरूप धर्म के सम्बन्ध से वायु होता है । वह अनुष्ण शीत स्पर्ण (न गर्म, न ठण्डा), संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व और वेग नामक : गुणों से युक्त है। हृदय का कम्पन, शब्द और अनुष्णशीत स्पर्श उसके लिंग (बोधक) हैं । आकाश एक होने से वह पारिभासिक संज्ञा है । वह नित्य, अमूर्त, तथा विभु (विश्वव्यापक) है। वह संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग और शब्द नामक ६ गुणों से युक्त है। शब्द नामक लिंग (बोधक) से ही आकाश का बोध होता है।" इसी तरह दूसरे
१. तत्र शब्दतन्मात्रादाकाशं, स्पर्शतन्मात्राद्वायुः, रूपतन्मात्रात्तेजः, रसतन्मात्रा
दापः, गन्धतन्मात्रान् पृथ्वी इत्यादि क्रमेण पूर्व-पूर्वनुप्रवेशेनैकद्वित्रिचतुष्पाच गुणानि आकाशादि पृथ्वीपर्यन्तानि महाभूतानीति सृष्टि क्रमः !
--सांख्य का० माठर पृ० ३७ २. पृथ्वीत्वाभिसम्बन्धात् पृथ्वी । अप्त्वाभिसम्बन्धादापः, तेजस्त्वाभिसम्बन्धात्तेजः
वायुत्वाभिसम्बन्धाद्वायुः । तत्राकाशस्य गुणः शब्द संख्या परिमाणपृथक्त्व संयोग-विभागाः । शब्दलिंगविशेषादेकत्वं सिद्धम् ""।
-प्रशस्तपादभाष्य
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