Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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मार्ग : एकादश अध्ययन
८२३
उड्ढं अहे य तिरियं, जे केइ तसथावरा । सव्वत्थ विरति कुज्जा, संति निव्वाणमाहियं ॥११॥
संस्कृत छाया पृथ्वीजीवाः पृथकसत्त्वाः, आपो जीवास्तथाऽग्नयः । वायुजीवाः पृथक्सत्त्वाः, तृणवृक्षा: सबीजकाः ॥७।। अथाऽपरे त्रसा: प्राणाः, एवं षटकाया आख्याताः । एतावानेव जीवकायो नाऽपरः कश्निद् विद्यते ॥८॥ सर्वाभिरनुयुक्तिभिर्मतिमान् प्रतिलेख्य सर्वेऽकान्तदुःखाश्च, अतः सर्वान्न हिस्यात् ।। एवं खलू ज्ञानिनः सारं, यन्न हिनस्ति कञ्चन । अहिंसासमयं चैव, एतावन्तं विजानीयात् ॥१०॥ ऊर्ध्वमधस्तिर्यक, ये केचित त्रस-स्थावरा: । सर्वत्र विरतिं कुर्यात् शान्तिनिर्वाणमाख्यातम् ॥११॥
__ अन्वयार्थ (पृढवी जीवा पुढो सत्ता) पृथ्वी या पृथ्वी के आश्रित जीव पृथक-पृथक जीव हैं, (आऊजीवा तहाऽगणी) तथा जल और अग्नि के जीव भी अलग-अलग हैं । (वाउजीवा पुढो सत्ता) तथा वायुकाय के जीव भी पृथक-पृथक् अस्तित्व रखते हैं, (तणरुक्खा सबीयगा) इसी तरह तृण, वृक्ष और बीज से युक्त वनस्पति में भी जीव हैं ।।७।।
(अहावरा तसा पाणा) इसके अतिरिक्त त्रसकाय वाले भी जीव होते हैं। (एवं छक्काय आहिया) इस प्रकार तीर्थंकरों ने छह जीवनिकाय (भेद) कहे हैं । (एतावए जीवकाए) इतना ही (मुख्य रूप से) जीवों का भेद है, (णावरे कोइ विज्जई) इसके अतिरिक्त और कोई जीव (का मुख्य प्रकार) नहीं होता ॥८॥
(मइम) बुद्धिमान पुरुष (सव्वाहिं अणुजुत्तीहिं) सभी युक्तियों से (पडिलेहिया) इन जीवों को विश्लेषणपूर्वक सिद्ध करके भलीभाँति देखे-जाने कि (सव्वे अक्तदुक्खा य) सभी प्राणियों को दुःख अप्रिय है, (अओ सव्वे अहिसिया) अतएव किसी भी प्राणी की हिंसा न करे ॥६॥
(णाणिणो) ज्ञानी पुरुष के ज्ञान का (एयं खु सारं) यही सार-निचोड़ है । (जं न हिसइ कंचण) कि वह किसी भी जीव की हिंसा नहीं करता है। (अहिंसा समयं चेव एतावतं विजाणिया) अहिंसा के समर्थक शास्त्र का भी इतना ही सिद्धान्त जानना चाहिए ॥१०॥
(उड्ढं अहे तिरियं) ऊपर, नीचे और तिरछे (लोक में) (जे केइ तसथावरा)
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