Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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समवसरण : बारहवां अध्ययन
को जान लेते हैं, परन्तु शून्यवाद मान लेने पर तो यह ज्ञान होना असम्भव है। लौकिकशास्त्रों में ८ शास्त्र ऐसे हैं, जो भूत या भविष्य का फल बता देते हैं । जैसेभौम, (भूमि सम्बन्धी ज्ञान बताने वाला), उत्पात (भूकम्प, दिग्दाह, उल्कापात आदि का सूचक), स्वप्न, आन्तरिक्ष (नक्षत्रों आदि आकाशस्थ ग्रहों का सूचक), आंग (अंग में उत्पन्न स्फुरण, छींक आदि का फल बताने वाला शास्त्र), स्वर (ईडा, पिंगला सुषुम्णा स्वर), लक्षण (शरीर में श्रीवत्स, स्वस्तिक आदि लक्षणों का फल सूचक शास्त्र), व्यञ्जन (शरीर पर तिल, मष आदि का फलसूचक) तथा नवम पूर्व में तृतीय आचार वस्तु प्रकरण में से उद्धत जो सुख-दुःख, जीवन-मरण, लाभ-अलाभ आदि का सूचक निमित्त शास्त्र है । ये अष्टांग निमित्त शास्त्र कहलाते हैं। इसी प्रकार पक्षी और मनुष्य, पशु (शृगाल आदि) की वाणी तथा प्रशस्त शकुन, छींक आदि भी लक्षणशास्त्र के अन्तर्गत है। इन सब शास्त्रों के पढ़ने से भूत या भविष्य की जानकारी मनुष्यों को होती है, वह किसी न किसी पदार्थ की सूचक होती है, सर्वशून्यवाद मानने पर तो यह हो नहीं सकती।
शून्यवाद का इन प्रमाणों से खण्डन होने पर भी चार्वाक शून्यबोधक शास्त्र की दुहाई देते हैं।
__ इस पर शून्यतावादी अक्रियावादी कहते हैं-ज्योतिष शास्त्र आदि का ज्ञान झूठा भी देखा जाता है । जैनागमों में भी यह बात स्वीकृत की गई है कि चतुर्दश पूर्वज्ञानी पुरुषों के ज्ञान में भी हीयमानता-वर्द्धमानता आदि ६ प्रकार का न्यूनाधिक तारतम्य होता है। अर्थात् उनका ज्ञान भी कमोवेश होता है, इसलिए उनके द्वारा कही बातों में भी अन्तर हो जाता है, तब फिर अष्टांग निमित्तशास्त्रवेत्ताओं के ज्ञान में अन्तर न हो, यह कैसे हो सकता है ? क्योंकि अष्टांग निमित्तशास्त्रज्ञों में भी कनिष्ठ, श्रेष्ठ, मध्यम, मन्द आदि के भेद से छह कोटि के व्यक्ति होते हैं, उनके एक-दूसरे के भूत-भविष्य कथन में भी फर्क पड़ता मालम देता है। कोई निमित्त सच्चा होता है कोई झठा भी सिद्ध होता है। किसी निमित्तज्ञ की बुद्धि की विकलता के कारण उस प्रकार का क्षयोपशम न होने से उसके निमित्त-ज्ञान में अन्तर पड़ जाना स्वाभाविक है। अतः इन निमित्तशास्त्रों के एक-दूसरे के ज्ञान में अन्तर पड़ता देखकर अक्रियावादी इन सभी विद्याओं को सत्य न मानते हुए निमित्तशास्त्र को सच्चा-झूठा दोनों प्रकार का मानकर समस्त थ तज्ञान (शास्त्र आदि) के त्याग का उपदेश देते हैं। वे अत्रियावादी यह भी समझते हैं कि विद्या पढ़े बिना ही हम लोकालोक के पदार्थों को जानते हैं। इस प्रकार वे कहते हैं --- ''ये सब ज्योतिष आदि विद्याएँ झूठी हैं, वेकार हैं, छींक, अपशकुन आदि होने पर या मूहूर्त आदि देखे बिना कहीं जाने पर भी कार्य सिद्धि होती देखी जाती है, इसलिए ज्योतिषियों के फलादेश आदि सब मिथ्या बकवास हैं।"
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