Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृतांग सूत्र
अर्थात् -- जैसे बीज जल जाने से उसमें से कोई अंकुर बिलकुल उत्पन्न नहीं होता, वैसे ही कर्मबीज जल जाने पर संसाररूप अंकुर उत्पन्न नहीं होता । मूल पाठ कओ कयाइ मेहावी, उप्पंज्जंति तहागया । तहागया अप्पडिन्ना, चक्खू लोगस्सणुत्तरा ॥ २० ॥ संस्कृत छाया
कृतः कदाचित् मेधावी, उत्पद्यन्ते तथागताः । तथागता अप्रतिज्ञाश्चक्षुर्लोकस्यानुत्तराः अन्वयार्थ
६७६
( तहागया) इस जगत् में फिर नहीं आने के लिए मोक्ष में गये हुए (मेहावी) ज्ञानी पुरुष ( कओ कयाइ उप्पंजंति ? ) क्या कभी फिर उत्पन्न हो सकते हैं ? कदापि नहीं । ( अप्पडिन्ना तहागया) निदानरहित वे तीर्थंकर गणधर आदि (लोकस्सणुत्तरा चक्खू ) प्राणिजगत् के लिए नेत्र के समान हैं ।
भावार्थ
जो पुनरागमन से रहित होकर मोक्ष में पहुँच गये हैं, मेधावी ( केवलज्ञानी) महापुरुष वापस यहाँ लौटकर जन्म कदापि नहीं । अर्थात् - उनका पुनर्जन्म नहीं हो सकता । वे सब प्रकार की कामनाओं (निदानों) से सर्वथा रहित तीर्थंकर गणधर आदि प्राणियों के सर्वोत्तम नेत्र हैं यानी पथ-प्रदर्शक हैं ।
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मूल पाठ अत्तरे ठाणे से, कासवेण पवेइए
व्याख्या
ऐसे मुक्त महापुरुषों का पुनः जन्म कहाँ ?
यह एक माना हुआ तथ्य है, कि मोक्ष में व्यक्ति तभी जाता है, जब उसके समस्त कर्म कट गए हों, समस्त बन्धनों एवं संसार से मुक्त हो गया हो। इसीलिए एक बार मोक्ष में जाने के बाद फिर यहाँ लौटकर आना नहीं हो सकता, क्योंकि उसके समस्त कर्म कट गये हैं, वापस संसार में आने और जन्ममरण का कोई भी कारण नहीं है । तब वे ज्ञानी महापुरुष अपवित्र गर्भाधानरूप इस संसार में फिर कभी कैसे उत्पन्न हो सकते हैं ? निदानरहित अर्थात् सांसारिक सुख भोगों या पदार्थों की कामना ( निदान) से रहित, प्राणिहिततत्पर तीर्थंकर, गणधर आदि संसार के सभी प्राणियों के लिए सत्-असत् पदार्थ के प्रदर्शक होने से नेत्र के समान हैं ।
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क्या कभी वे ले सकते हैं ?
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जं किच्चा णिव्वुडा एगे, णिट्ठ पावंति पंडिया ॥ २१ ॥
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