Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
View full book text
________________
याथातथ्य : तेरहवाँ अध्ययन
६११
केसिंचि तक्काइ अबुज्झ भावं, खुद्दपि गच्छेज्ज असद्दहाणे ।। आउस्स कालाइयारं वघाए, लद्धाणुमाण य परेसु अछे ॥२०॥ कम्मं च छंदं च विगिच धीरे, विणइज्ज उ सव्वओ आयभावं । रूवेहि लुप्पंति भयावहेहि, विज्ज गहाय तसथावरेहि ॥२१॥ न पूयणं चेव सिलोयकामी, पियमप्पियं कस्सइ णो करेज्जा । सव्वे अणठे परिवज्जयंते, अणाउले य अकसाइ भिक्खू ॥२२॥
संस्कृत छाया स्वयं समेत्याऽथवाऽपि श्र त्वा, भाषेत धर्म हितकं प्रजानाम् । ये गहिताः सनिदानप्रयोगाः, न तान् सेवन्ते सुधीरधर्माण: ।।१६।। केषांचित्तणाऽबुद्ध वा भावं, क्षद्रत्वमपि गच्छेदश्रद्दधानः । आयुष: कालातिचारं व्याघातं, लब्धानुमानश्च परेष्वर्थान् ॥२०॥ कर्म च छन्दश्च विवेचयेद् धीरो, विनयेत्त सर्वत आत्मभावम् ।। रूपैलुप्यन्ते भयावहैविद्वान् गृहीत्वा त्रसस्थावरेभ्यः ॥२१।। न पूजनं चैव श्लोककामी, प्रियमप्रियं कस्यापि नो कुर्यात् । सर्वाननर्थान् परिवर्जयन्, अनाकुलश्चाकषायी भिक्षुः ॥२२।।
अन्वयार्थ (सयं समेच्चा) अपने आप धर्म को जानकर (अदुवावि सोच्चा) अथवा दूसरे से सुनकर, (पयाण हिययं धम्म भासेज्जा) प्रजाओं (जनता) के लिए हितकारक धर्म का भाषण करे । (जे गरहियासणियाणप्पओगा) जो कार्य निन्ध है अथवा जो कार्य निदान (सांसारिक फलाकांक्षा) की प्राप्ति के लिए किये जाते हैं (सुधीरधम्मा ताणि ण सेवंति) सुधीर वीतरागधर्म के अनुयायी ऐसे अकरणीय कार्यों का सेवन नहीं करते ॥१६॥
(केसिंचि भावं तक्काइ अबुज्झ) कुछ लोग ऐसे होते हैं, जिनके भावों (अभिप्रायों) को अपनी तर्कबुद्धि से न समझा जाय तो वे (असद्दहाणे खुद्दपि गच्छेज्ज) उस उपदेश पर श्रद्धा न करके क्षुद्रता (क्रोध) पर उतर आते हैं । (आउस्स कालाइयारं वघाए) तथा वह उपदेश देने वाले की दीर्घकालिक आयु को भी आघात पहुँचाकर घटा सकता है, अर्थात् उसे मार भी सकता है । (लद्धाणुमाणे परेसु अठे) इसलिए साधु अनुमान से दूसरों का अभिप्राय (भाव: जानकर फिर धर्म का उपदेश दे ॥२०॥
(धीरे कम्मं च छंदं च विगिच) धीर साधक श्रोता के कर्म (आचरण) एवं अभिप्राय को सम्यक् प्रकार से जान ले, फिर (सव्वओ आयभावं उ विणइज्ज)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org